हिन्दी/मराठी साहित्य – लघुकथा ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – जीवन रंग #2 ☆ सुश्री वसुधा गाडगिल की हिन्दी लघुकथा ‘लाइलाज’ एवं मराठी भावानुवाद ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  

आज प्रस्तुत है  सर्वप्रथम सुश्री वसुधा गाडगिल जी की  मूल हिंदी लघुकथा  ‘लाइलाज ’ एवं  तत्पश्चात श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  द्वारा मराठी भावानुवाद  नाइलाज

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – जीवन रंग #2 ☆ 

सुश्री वसुधा गाडगिल

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री वसुधा गाडगिल जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है । पूर्व प्राध्यापक (हिन्दी साहित्य), महर्षि वेद विज्ञान कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश. कविता, कहानी, लघुकथा, आलेख, यात्रा – वृत्तांत, संस्मरण, जीवनी, हिन्दी- मराठी भाषानुवाद । सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक, भाषा तथा पर्यावरण पर रचना कर्म। विदेशों में हिन्दी भाषा के प्रचार – प्रसार के लिये एकल स्तर पर प्रयत्नशील। अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलनों में सहभागिता, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ,आकाशवाणी , दैनिक समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित। हिन्दी एकल लघुकथा संग्रह ” साझामन ” प्रकाशित। पंचतत्वों में जलतत्व पर “धारा”, साझा संग्रह प्रकाशित। प्रमुख साझा संकलन “कृति-आकृति” तथा “शिखर पर बैठकर” में लघुकथाएं प्रकाशित , “भाषा सखी”.उपक्रम में हिन्दी से मराठी अनुवाद में सहभागिता। मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट, नारनौल (हरियाणा ) द्वारा “डॉ. मनुमुक्त मानव लघुकथा गौरव सम्मान”, लघुकथा शोध केन्द्र , भोपाल द्वारा  दिल्ली अधिवेशन में “लघुकथा श्री” सम्मान । वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। )

☆ लाइलाज

अस्पताल की लेखा शाखा में दोनों लिपिकों की आपस में चर्चा चल रही थी।

” सरकार ने हर मरीज पर राशि भेजी है ! ”

” अच्छा! कितनी ! ”

” पचास हज़ार प्रति मरीज ।”

” बहुत है! ”

” कुर्सी तन्नक इधर लो …हाँ ऐसे! मरीज तक दस हज़ार का इलाज पहुँच रहे हैं । ”

” बाकी चालीस हज़ार! ”

” मंत्रियों, अफसरों, स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारियों की तंदुरुस्ती बनाने में… हेंहेंहें..! ”

” महामारी का पैसा भी ड़कार लेंगे! हद है ! ”

” लालच… लाचारी, महामारी को नहीं देखती! ”

” हाँ मित्र, ये महामारी तो एक समय बाद खत्म हो जायेगी लेकिन भ्रष्टाचार की महामारी…ये लाईलाज है!

© वसुधा गाडगिल

संपर्क –  डॉ. वसुधा गाडगिल  , वैभव अपार्टमेंट जी – १ , उत्कर्ष बगीचे के पास , ६९ , लोकमान्य नगर , इंदौर – ४५२००९. मध्य प्रदेश.

❃❃❃❃❃❃

☆ नाईलाज 

(मूल कथा – लाईलाज   मूल लेखिका – डॉ. वसुधा गाडगीळ     अनुवाद – उज्ज्वला केळकर)

 

इस्पितळाच्या लेखा विभागात दोन लिपिक आपापसात बोलता होते.

‘सरकारने प्रत्येक रुग्णासाठी पैसे पाठवले आहेत.’

‘अच्छा! किती? ‘

‘प्रत्येक रुग्णागणिक पन्नास हजार.’

‘खूप झाले ना?’

‘जरा खुर्ची इकडे जवळ सरकवून घे…. हां… अशी …प्रत्येक रुग्णापर्यंत इलाजासाठी दहा हजार पोचतात.’

‘मग बाकीचे चाळीस हजार?’

‘मंत्री, ऑफिसर, स्वास्थ्य विभागातील अधिकार्‍यांना तंदुरुस्त बनवण्यात खर्ची पडतात… हाहाहा…!’

‘महामारीचा पैसासुद्धा गिळून टाकतात हे लोक…  हद्द झाली.’

‘लालसा… लाचारी, महामारी बघत नाही.’

‘होय मित्रा, ही महामारी काही काळाने का होईना संपून जाईल पण भ्रष्टाचाराची महामारी … हिच्यावर काहीsss इलाज नाही.’

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170