सुश्री ऋतु गुप्ता

पैसा कमाने के चक्कर में निजी अस्पतालों ने दिया सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा

(सुश्री ऋतु गुप्ता जी  का एक सार्थक, सामयिक  एवं सटीक लेख। सुश्री ऋतु जी ने एक अत्यंत ज्वलंत  समस्या  पर अपने विचार रखे हैं । इस विषय  पर  हमारे साथ ही चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों को मानवीय दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अभी भी  कुछ सम्माननीय चिकित्सक हैं, जो बिना हिम्मत हारे अथक प्रयास करते  हैं ताकि सर्जरी की आवश्यकता न पड़े। हम उनका सादर सम्मान करते हैं।) 

जब मैनें 20 जनवरी रविवारीय दैनिक ट्रिब्यून में एक न्यूज का हैडलाइन पढ़ा कि मोटी कमाई के लिए सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा दे रहे हैं निजी अस्पताल, मेरे अपने साथ बीती एक-एक घटना मेरी आँखों के सामने तैर गई।आज क्या आज से दस साल पहले भी तो यही तो होता था। तब भी तो सिजेरियन डिलीवरी के नये -नये बहाने खोज लिए जाते थे और बेचारे घरवाले डॉक्टर्स के सामने कुछ बोल नहीं पाते और मजबूरन हाँ भर देते।

मुझे पूरा टाईम हो चुका था  डिलीवरी कभी भी हो सकती थी। एक दिन जब मेरी तबीयत थोड़ा बिगड़ी तो मैं अपने डॉक्टर के पास गई उसने कहा कि तुरंत एडमिट करना पड़ेगा बच्चे ने अंदर ही पॉटी कर ली है।मुझे आर्टिफिशियल दर्द चालू किये गये लेकिन असफल रहे। इंजेक्शन व दवाओं के जरिये कोशिश की जाती रही लेकिन दर्द रूक रहे थे। मैं जब तक होश में थी मुझे याद है कई डाक्टर व स्टाफ के लोग खड़े थे।मेरे कानों में यह शब्द साफ पड़ रहे थे कि बच्चे का सिर नीचे फंस चुका है,ऑपरेशन भी नहीं कर सकते फोरसेप्स डिलीवरी करनी पड़ेगी वो भी जल्दी क्योंकि बच्चे की हार्ट बीट कम होती जा रही हैं।उसके बाद पता नहीं मुझे होश नहीं रहा मालूम नहीं जान बूझ  कर बेहोश किया गया था या फिर दवाओं की ओवरडोज से ऐसा हुआ था। मेरे शरीर का ज्यादातर ब्लड बह चुका था शायद गलत कट लग गया था। मुझे 24घंटों के बाद होश आया। बेटे को 5 दिन तक नर्सरी में डाल दिया गया।बहुत कोशिशों के बाद  ही मेरी तबीयत में कुछ सुधार आना शुरू हुआ।बाद में उन डॉक्टर्स में से हमारे जान पहचान के एक ने बताया कि केस बिगड़ चुका था. दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने की पूरी योजना बना ली थी अगर कुछ झण और देरी होती तो। बाद में पता चला इतने नामी नर्सिंगहोम में भी ज्यादातर डिलीवरी सिजेरियन के चक्कर में ऐसे ही करते हैं। एक बार तो दिल किया कि केस कर दें डॉक्टर पर लेकिन सबूत क्या था कि मुझे यह समस्या नहीं थी। सिजेरियन डिलवरी तो नहीं हो पाई मेरी पर फोरसेप्स डिलीवरी व नाजुक हालत की वजह से कई दिन वहाँ रख पूरा पैसा वसूल लिया।

पिछले एक दशक में एनएचएफएस के अनुसार सिजेरियन डिलीवरी की प्रतिशत दुगुनी हो गई है जो 2005 में 8.5%  थी वह 2016 तक  17.2% पहुंच गई। निजी अस्पतालों में 40% व सरकारी अस्पतालों में 16.44% डिलीवरी सीजेरियन होती हैं। डॉक्टर्स के अनुसार वे बहुत जरूरत पड़ने पर ही ऐसा करते हैं, उनके अनुसार ऐसी कई विभिन्न परिस्थितियों में जैसे यूटरस का मूहँ नहीं खुलना, बी.पी. हाई होना,बच्चे की धड़कन कम होना, गले में गर्भनाल फंसना, बच्चे का, उल्टा या फिर कमजोर होना इत्यादि। लेकिन जो भी है निजी अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी का इंतजार न कर आननफानन में कुछ ऐसा प्रेशर बना देते हैं कि हार कर घरवाले तैयार हो जाते हैं।

सरकार भी चिंतित है इन सिजेरियन डिलीवरी की वजह से क्योंकि एक तो प्रसूता के शरीर पर इससे गलत असर होता है,दूसरे नॉर्मल डिलीवरी व सिजेरियन डिलीवरी के खर्चे में कई गुणा अंतर है। जहाँ नॉर्मल में दस हजार के आसपास तो सिजेरियन में लगभग पचास हजार के आसपास का खर्चा है।स्वास्थय मंत्रालय ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए सीजीएचएस से जूड़े सभी प्राईवेट व सरकारी अस्पतालों के लिए जरुरी कर दिया है कि इस तरह हर दिन हुई डिलीवरी को बोर्ड लगा कर सार्वजनिक करें।

सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई गई है कि कोई ऐसा कानून व नियम निकाले जाये कि बेवजह सिजेरियन डिलीवरी से बचा जा सकें। वैसे भी निजी अस्पतालों पर इल्जाम लगते रहें हैं कि पैसा कमाने के चक्कर में मरीज को जबरदस्ती ज्यादा दिन एडमिट रखते हैं, जबरदस्ती की ज्यादा दवाईयां आदि लिख देते हैं।इन शिकायतों में भी कुछ सुधार हो सकेगा। इसके लिए भी और ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान उचित व पौष्टिक डाइट, कैल्शियम, आयरन व अन्य जरूरी विटामिन मिल सके।उचित देखरेख से इन परस्थितियों से बचा जा सकता है। भगवान स्वरूप डॉक्टर्स को भी चाहिए की वे बिना किसी जरूरी वजह ऐसी डिलीवरी करने से बचें। क्योंकि इससे स्वास्थ्य व पैसे दोनों का ही नुकसान हैं। वे अपने इस सम्मानजनक पेशे व ओहदे का ध्यान रखें।

© ऋतु गुप्ता

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