श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – मानस प्रश्नोत्तरी

*प्रश्न*- श्रेष्ठ मनुष्य बनने के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- पहले मनुष्य बनने का प्रयास करना चाहिए।
*प्रश्न*- मनुष्य बनने के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- परपीड़ा को समानुभूति से ग्रहण करना चाहिए।
*प्रश्न*- परपीड़ा को समानुभूति से ग्रहण करने के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- परकाया प्रवेश आना चाहिए।
*प्रश्न*- परकाया प्रवेश के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- अद्वैत भाव जगाना चाहिए।
*प्रश्न*- अद्वैत भाव जगाने के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- जो खुद के लिए चाहते हो, वही दूसरों को देना आना चाहिए क्योंकि तुम और वह अलग नहीं हो।
*प्रश्न*- ‘मैं’ और ‘वह’ की अवधारणा से मुक्त होने के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- सत्संग करना चाहिए। सत्संग ‘मैं’ की वासना को ‘वह’ की उपासना में बदलने का चमत्कार करता है।
*प्रश्न*- सत्संग के लिए क्या करना चाहिए?
*उत्तर*- अपने आप से संवाद करना चाहिए। हरेक का भीतर ऐसा दर्पण है जिसमें स्थूल और सूक्ष्म दोनों दिखते हैं। भीतर के सच्चिदानंद स्वरूप से ईमानदार संवाद पारस का स्पर्श है जो लौह को स्वर्ण में बदल सकता है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

3 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Vijaya

” मन ही देवता मन ही ईश्वर मन हे बडा़ न कोय
मन उजियारा जब जब फैले जग उजियारा होय
इस‌ उजले दरपन पर प्राणी
घूल न जमने पाए
तोरा मन दरपन कहलाए ,
भले बुरे
सारे करतों को देखे और दिखाए|
और यह भी कि जल ,थल, काष्ठ पाषाण प्रभुमय हो जाए एक हो जाए अद्वैत हो जाए!
संजय जी प्रणाम???
विजया टेकसिंगानी

लतिका

बोधपूर्ण प्रश्नोत्तरी!??

अलका अग्रवाल

अद्वैत भाव जागृत कर मैं को छोड़ हम का भाव अपनाकर ही मानव धर्म निभाया जा सकता है।जीवन दर्शन सिखाती जीवनोपयोगी प्रश्नोत्तरी।??