श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
सुबह जल्दी घर से निकला था वह। ऑफिस के एक दक्षिण भारतीय सहकर्मी की शादी थी। दक्षिण भारत में ब्रह्म मुहूर्त में विवाह की परंपरा है। इतनी सुबह तो पहुँचना संभव नहीं था। दस बजे के लगभग पहुँचा। ऑफिस के सारे दोस्त मौज़ूद थे। जमकर थिरका वह।
समारोह में भोजन के बाद मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल पहुँचा। पड़ोस के सिन्हा जी की पत्नी आई सी यू में हैं। किसी असाध्य रोग से जूझ रही हैं। वह अपनी चिंता जताता रहा जबकि उसे बीमारी का नाम भी समझ में नहीं आया था। आधा किलो सेब ले गया था। सेब का थैला पकड़ाकर इधर उधर की बातें की। दवा नियमित लेने और ध्यान रखने की रटी-रटाई बिनमांगी सलाह देकर वहाँ से निकला।
घर लौटने की इच्छा थी पर सुबह अख़बार में अपने दूर के रिश्तेदार के तीये की बैठक की ख़बर पढ़ चुका था। आधा घंटा बाकी था। सीधे बैठक के लिए निकला। ग़मगीन, लटकाया चेहरा बनाये आधा घंटा बैठा वहाँ।
मुख्य सड़क से घर की ओर मुड़ा ही था कि हरीश मिल गया। पिछली कंपनी में दोनों ने चार साल साथ काम किया था। ख़ूब हँसी-मज़ाक हुआ। खाना साथ में खाया।
रात ग्यारह बजे घर आकर सोफा पर पसर गया। टेबल पर क्षेत्रीय सांस्कृतिक विभाग का पत्र पड़ा था। खोलकर देखा तो लिखा था, ‘बधाई। गत माह क्षेत्रीय सांस्कृतिक विभाग द्वारा आयोजित एकल अभिनय प्रतियोगिता के आप विजेता रहे। आपको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता घोषित किया जाता है।’
वह मुस्करा दिया।
© संजय भारद्वाज , पुणे
9890122603
यह संसार नाट्यशाला है जहाँ हमसब ईश्वर जो निर्देशक है उसके इशारों पर अभिनय करते हैं।
संसार रूपी रंगमंच पर हर इंसान मुखौटा पहनकर ही चलता है। वह कितना बड़ा अभिनेता हैं यह तो परिस्थितियाँ ही साबित करती है!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
आज समय की कठपुतलियाँ समयानुसार अभिनय करते हैं, पुरस्कृत करने वाला कोई नहीं सिवाए नियती के.
सुंदर लघुकथा हेतु आदरणीय मित्रवर संजय जी को हार्दिक बधाई
समय नुसार ‘एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं
लोग ‘
सटीग स्वभाव परिक्षण
विजया टेकसिंगानी
सुंदर अभिव्यक्ति