श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – यह पल ☆

 

सामान्य निरीक्षण है कि हम में से अधिकांश की मोबाइल गैलरी एक बड़ा भंडारघर है। पोस्ट पर पोस्ट, ढेर सारी पोस्ट मनुष्य इकट्ठा करता रहता है, डिलीट नहीं करता। फिर एक दिन सिस्टम एकाएक सब कुछ डिलीट कर देता है।

गड्डियाँ बाँधे निरर्थक संचित धन हो या थप्पियाँ लगाकर संजोये रखे सपने, चलायमान न हों तो सब व्यर्थ है। जीवन न बीता कल है, जीवन न आता कल है। जीवन बस इस पल है।

पल, पल रहा है, इसके साथ पलो।  पल चल रहा है, इसके साथ चलो। पल तो रुकने से रहा, नहीं चले तो तुम रुके रह जाओगे।

जो रुका रह गया, वह जड़ हो गया। चलायमान का ठहर जाना, चेतन का जड़ हो जाना, जीवन की इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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लतिका

जीवन की यथार्थ व्याख्या, बहुत खूब!

ऋता सिंह

जीवन एक प्रवाह है और उस प्रवाह के साथ बहते जाना ही जीवन जीना है। सुंदर अभिव्यक्ति!

अलका अग्रवाल

समय के साथ चलायमान रहना ही जीवन है-यही सफलता की कुंजी है।
सुंदर व्याख्या।

अरविन्द तिवारी

सच है जो समय के साथ चला वही कुछ कर सका ,समय किसी का इंतज़ार नहीं करता ,अभिनन्दन l