श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कुदरत का बुलडोजर“।)
जब हम कुदरत का कानून अपने हाथ में ले लेते हैं, तो कुदरत भी कानून कायदे ताक में रख देती है। जब जब भी इंसान ने प्रकृति को पूजा है, सहेजा है, संवारा है, प्रकृति प्रसन्न हुई है, प्रकृति ने उसे रोटी, कपड़ा और मकान दिया है, लेकिन जब जब उसने प्रकृति से खिलवाड़ किया है, उसकी छाती पर हल की जगह बुलडोजर चलाया है, गरीबों के घर उजाड़े और अपने महल बनाए हैं, वह क्रुद्ध हुई है, उसने विकराल रूप धरा है, और सब कुछ तहस नहस करके रख दिया है।
पर्वतराज हिमालय हो, अथवा उसका आंचल हिमाचल, पंजाब हो अथवा हरियाणा, देवभूमि उत्तराखंड हो या फिर गढ़वाल क्षेत्र, शुद्ध जल, शीतल पवन और स्वर्ग समान पर्यावरण अपने आप में पर्याप्त खाद्यान्न, खनिज सम्पदा, फूलों की घाटी और एक नहीं अनेक ऐसे पर्वत जहां संजीवनी बूटी सहित कई औषधीय पौधे केवल इंसान ही नहीं, प्राणी मात्र का पालन पोषण, और संवर्धन ही नहीं, उसे संरक्षण भी प्रदान करते हैं। ।
प्रकृति ने पुरुष को अगर संघर्ष करना सिखाया है, तो उसके विकास में उसका हाथ भी बंटाया है। सूर्य का प्रकाश संसार के लिए है, नदियां अपना जल नहीं पीतीं, वृक्ष अपना फल नहीं खाते। यह स्वार्थी मनुष्य प्रकृति से लेने में कभी पीछे नहीं हटता और देने के लिए, वैसे भी इसके पास क्या है।
लेकिन जब से इसने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ना शुरू कर दिया है, जंगल साफ कर दिए, और खेतों पर कंक्रीट जंगल खड़े कर दिए, जिन पहाड़ों ने इसे बारिश दी, सुहाना मौसम दिया, वहां अपने सैर सपाटे के लिए आलीशान भवन और होटलें खोल लीं। अब वह पहाड़ों पर चढ़ता नहीं, हेलीकॉप्टर में उड़कर पहुंचता है। ।
अपनी गोद में खेलने वाले बालक का यह उत्पात अब वसुधा से बर्दाश्त नहीं होता। यह नादान जिस पेड़ पर बैठा है, उसी को काट रहा है। विकास के नाम पर विनाश का तांडव रच रहा है जिसमें वहां का बेचारा आम रहवासी पिसा जा रहा है।
अपनी सरकार बचाने के लिए जब गरीबों के घरों पर बुलडोजर चला, अवैध खनन के बल पर बड़े बड़े ट्रेडिंग सेंटर और मॉल खड़े होंगे, तो आसमान भी रोएगा और धरती भी खसकेगी। विकास की अंधाधुंध आंधी के कारण पहाड़ भी बर्फ की तरह पिघलने लगेंगे। इस तबाही को अब कौन रोक पाएगा। ।
बुलडोजर कुदरत का हो अथवा सरकार का, पिसना तो आम आदमी को ही है। हम तो शायद प्रायश्चित करने से रहे, शायद प्रकृति का भी प्रायश्चित करने का यही तरीका हो। वह पहले चेताती है और बाद में कहर ढहाती है। हमें स्वयं संज्ञान लेते हुए ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए, पीड़ितों का दर्द भी प्रकृति का ही दर्द है।
ॐ शांति ..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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