श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नाभि दर्शन”।)
नाभि कोई दर्शन अथवा प्रदर्शन की वस्तु नहीं, यह जीव का वह मध्य बिंदु है, जो सृजन के वक्त एक नाल से जुड़ा हुआ था, ठीक उसी तरह जैसे एक फूल अपने पौधे से और एक फल अपनी डाल से। वह इस नाल के जरिये ही भरण पोषण प्राप्त कर पुष्ट होकर खिल उठता है। हम जब फल फूल तोड़ते हैं, वह अपने सर्जनहार से अलग हो जाता है। पेड़ पर लटकते आमों को उनकी नाभि और नाल के साथ आसानी से देखा जा सकता है। एक पुष्प को हम उसकी नाल के साथ ही तो धारण करते हैं।
फल, फूल और सब्जियों में हम जिसे डंठल कहते हैं, वह और कुछ नहीं, पौधों की नाल ही है। हर फल और फूल में आपको नाभि स्थान और नाल नजर आ ही जाती है। सेवफल, टमाटर, नींबू सबमें नाभि और नाल आसानी से देखी जा सकती है। सृष्टि बीज से ही चल रही है और बीज भी फल के अंदर ही समाया है।।
हमारा जन्म भी ऐसे ही हुआ था। हमारे शरीर के मध्य, बीचोबीच जो नाभि स्थित है , वह भी हमारे जन्म के पहले गर्भनाल से हमारी जन्मदात्री मां से जुड़ी हुई थी। नौ महीने इसी नाल के जरिये हम पोषित, पल्लवित और विकसित होते चले गए।
एक फूल से थे हम, जब हम अपनी मां के शरीर से अलग हुए थे।।
आज हम इतने विशाल और इतनी छोटी सी हमारी नाभि। बीज की नाभि में पूरा वृक्ष समाया, यही तो है उस परम ब्रह्म की माया।
रावण की इसी नाभि में अमृत था। हमारी नाभि में भी अमृत है, लेकिन हम भी किसी कस्तूरी मृग से कम नहीं।
बचपन में जब हमारा पेट दुखता था तो मां इसी नाभि के आसपास हींग का लेप कर देती थी। पूरे शरीर का संतुलन इस नाभि पर ही होता है, यह थोड़ी भी खसकी तो समझें दूठी खसकी। इसका भी देसी इलाज था हमारी मां के पास। हम तो दहल गए थे सुनकर।।
रोटी के टुकड़े पर जलता कोयला हमारी नाभि पर रखा जाता था और फिर उसे एक ऐसे लोटे से उल्टा ढंक दिया जाता था, जिसकी किनोरें हमारे पेट को ना चुभें। थोड़ी देर में लोटा हमारे पेट से चिपक जाता, बेचारे जलते कोयले का दम घुट जाता।
कुछ ही पलों में दूठी अपनी जगह आ जाती, लोटा झटके से पेट से अलग छिटक जाता और अंगारा बुझ जाता।लेकिन आज ऐसे जानकार कहां। अतः नीम हकीम से बचें।
बिल्ली के बारे में ऐसा अंधविश्वास है कि वह अपनी नाल का किसी को पता नहीं लगने देती।
कहते हैं, जिसके पास बिल्ली की नाल हो, उसके भाग खुल जाते हैं। पुरानी दादियां, न जाने क्यों, जन्म लिए बच्चों की नाल भी सहेजकर रखती थी। जरूर , संकट के समय , वह बालक के लिए संजीवनी बूटी का काम करती होगी।।
हमारे अंधविश्वास पर कतई विश्वास ना करें, लेकिन अपनी नाभि का भी विशेष ख्याल रखें।
इस पर घी, खोपरे, अथवा सरसों का तेल , कुछ भी लगाते रहें। अगर देसी गाय का शुद्ध घी मिल जाए तो और भी बेहतर। नुकसान कुछ नहीं, फायदे हम नहीं गिनाएंगे , आप खुद जान जाएंगे।
महिलाएं, शरीर का कोई भी अंग श्रृंगार विहीन नहीं रखना चाहती। सोलह श्रृंगार में अब तक नाभि शामिल नहीं थी, अब वो भी शामिल हो गई है। नाभि दर्शन की नहीं प्रदर्शन की वस्तु हो गई है। नाभि दर्शना साड़ी तो आजकल आउट ऑफ फैशन हो गई, नाभि पर सोना नहीं, चांदी नहीं, सिर्फ डायमंड ही शोभा देता है।
शोभा दे, अथवा ना दे, इस पर क्या कहती हैं , आज की शोभा डे ..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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