श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| छवि || ∆ image ∆।)

?अभी अभी # 154 ⇒ || छवि || ∆ image ∆? श्री प्रदीप शर्मा  ?

 

जब भी हम छवि की बात करते हैं, कोई ना कोई चेहरा अनायास ही हमारी आंखों के सामने आ जाता है, और वही चेहरा आता है, जो हमारा देखा हुआ है और हमें न केवल प्रिय है, अपितु उसकी छवि पहले से ही हमारे मन में अंकित है। सांवरी सूरत, मोहिनी मूरत ! जी हां, वह कोई गोरा चिकना चेहरा भी नहीं, केवल उसकी सूरत ही सुंदर नहीं, उसकी तो मूरत भी मोहक है।

क्या सूरत और मूरत अलग अलग है ? कहीं बिना सूरत के भी कहीं कोई मूरत बनी है। एक बुत बनाऊंगा तेरा, और पूजा करूंगा, अरे मर जाऊंगा यार, अगर मैं दूजा करूंगा। मंदिर और मूर्ति की आवश्यकता ही इसीलिए होती है, क्योंकि हमारे मन को एक आधार चाहिए। रात दिन जब एक ही सूरत की मूरत का दीदार करेंगे, तो कभी ना कभी तो उसकी छवि हमारे मन मंदिर में अंकित हो जाएगी। फिर तो स्थिति ऐसी हो जाएगी, जब जरा गर्दन झुकाई, देख ली तस्वीरे यार। ।

आखिर तस्वीर क्या है, तस्वीर तेरी दिल में, जिस दिन से उतारी है। दुनिया का सबसे बड़ा कैमरा हमारी आंखों में लगा है, बाहरी कैमरा तो अब जाकर बाजार में आया है। एक कलाकार तो अपनी उंगलियों और रंगों से ही किसी की तस्वीर कैनवास पर उतार देता है, लेकिन हमारी आंखें तो अपने आराध्य की एक झलक पाकर ही उसे मन के पिंजरे में जन्म जन्मांतर के लिए कैद कर लेती है।

सूरदास जी तो जन्मांध थे, लेकिन कृष्ण की बाल

लीलाओं का सजीव और सचित्र वर्णन उन्होंने किया है, वाकई उसके लिए उनके आराध्य ने उन्हें अवश्य ही दिव्य दृष्टि प्रदान की होगी। एक ऐसी दृष्टि जो केवल किसी विरले प्रज्ञाचक्षु को ही प्राप्त होती है, जहां अंदर से बाहर का आंखों देखा हाल बयां किया जाता है।

छवि किसी बाहरी आंखों की मोहताज नहीं होती। यह एक अंदरूनी मामला है। ।

इस संसार में किसे अपनी छवि की चिंता नहीं ! अंग्रजी में हम इसे भी इमेज ही कहते हैं। अच्छी इमेज के लिए इंप्रेशन भी मारना पड़ता है। भाई, यह तो मायावी संसार है। यहां तो किसी के बारे में गलत बोलने अथवा सोचने से ही उसकी छवि खराब हो जाती है। वह अच्छा आदमी नहीं है, वह औरत बहुत बुरी है, लो जी, आईएसआई मार्का प्रमाण पत्र।

यहां आस्तिक ही नहीं, नास्तिक के भी देवी देवता होते हैं। फिल्मी कलाकार और आजकल तो क्रिकेट खिलाड़ी भी किसी भगवान से कम नहीं। लड़कियां देवानंद और साधना की तस्वीरें अपनी किताबों में रखती थी। अपने जमाने में राजेश खन्ना के भी यही हाल थे। ।

इनका भी छवि गृह होता था, जिसे टॉकीज अथवा सिनेमा घर कहते थे। वे भी किसी मंदिर से कम नहीं थे। इन देवी देवताओं को पर्दे पर देखने के लिए कितनी भीड़ उमड़ती थी, यहां सभी आस्तिक थ, नास्तिक कोई नहीं।

जो किसी से प्यार करता है, वह नास्तिक हो ही नहीं सकता। महबूबा तेरी तस्वीर, किस तरह मैं बनाऊं ! यह संसार भले ही नश्वर हो, हमारे माता पिता की छवि क्या कभी हमारी आंखों से ओझल हो सकती है। वे तो सपनों में भी चले आते हैं, बिन बुलाए, बिन दस्तक दिए। जरूर हमारे अवचेतन मन में भी उनकी ही छवि अवश्य मौजूद होगी। ।

ईश्वर को आज तक किसी ने नहीं देखा, यह गूंगे का गुड़ है, जिसे आप चख तो सकते हो, लेकिन बता नहीं सकते। भक्त और भगवान के बीच केवल यह छवि, उसकी सूरत और उसकी मूरत ही सेतु का काम करती है।

सिमर सिमर उतरै पारा। उसकी एक छवि, एक झलक ही वह आधार है, वह विश्वास है, वह बल है। आज कोई भक्त प्रह्लाद नहीं, जिसके लिए भगवान नरसिह खंभा फाड़कर प्रकट हो जाएं, उसके लिए तो छप्पन इंच का सीना ही काफी है। उस विराट की छवि के प्रति समर्पण और शरणागति ही एकमात्र उपाय है, उसे पाने का, उसमें समा जाने का। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments