श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चेहरे पर चेहरा“।)
अभी अभी # 180 ⇒ चेहरे पर चेहरा… श्री प्रदीप शर्मा ०००
THE BEARD
क्या दाढ़ी चेहरे पर एक और चेहरा नहीं। केश को महिलाओं का श्रृंगार माना गया है और दाढ़ी को मर्दों की खेती, जब चाहे उगा ली, और जब चाहे काट ली। एक समय था, वानप्रस्थ और सन्यास के वेश में दाढ़ी का भी योगदान होता था। आज भी साधु, बाबा और संन्यासियों का श्रृंगार है यह दाढ़ी।
चलती का नाम गाड़ी की तर्ज पर किशोर कुमार ने एक फिल्म बनाई थी, बढ़ती का नाम दाढ़ी ! आप अगर काटो नहीं, तो दाढ़ी और नाखून दोनों बढ़ने लगते हैं। क्या विचित्र सत्य है, हमारे शरीर के नाखून और बाल, शरीर का हिस्सा होते हुए भी, इनमें खून नहीं है। इन्हें काटो, तो दर्द नहीं होता।
कैसी अहिंसक पहेली है यह ;
बीसों का सर काट लिया।
ना मारा ना खून किया। ।
हमारे दिव्य अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर के मुखमंडल की आभा देखते ही बनती है। स्वामी विवेकानंद के चेहरे का ओज देखिए। कलयुग के फिल्मी सितारों को ही देख लीजिए, देव, राज और दिलीप। धरम, राजेश खन्ना, जीतू और गोविंदा ही नहीं एंग्री यंग मैन अमिताभ भी ! बेचारे अमिताभ को तो स्क्रीन टेस्ट में भी बड़ी परेशानी आई थी। भला हो सात हिंदुस्तानी आनंद, नमकहराम, मिली और शोले और दीवार जैसी फिल्मों का, जिसने अमिताभ को सदी का महानायक बना दिया और हमारे बिग बी ने एक चेहरे पर एक और चेहरा चढ़ा लिया।
कितनी पते की बात कह गए हैं हसरत जयपुरी साहब फिल्म असली नकली में ;
लाख छुपाओ छुप ना सकेगा
राज दिल का गहरा।
दिल की बात बता देगा
असली नकली चेहरा। ।
साहिर ने अपने चेचक के दाग वाले चेहरे को कभी दाढ़ी में नहीं छुपाया लेकिन एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेने वालों की अच्छी खबर ली। गुलजार तो कह गए हैं, मेरी आवाज ही पहचान है, और आज इधर जहां देखो वहां, दाढ़ी ही मेरी पहचान है। ।
एक समय था, जब मर्द की पहचान मूंछों से होती थी।
लिपटन टाइगर वाला मुछंदर याद है न? लिपटन माने अच्छी चाय। मूंछ पर ताव देना और शर्त हारने पर मूंछ मुंडवा देने की कसम खाना आम था। मूंछ तो हमने भी बढ़ाई थी, लेकिन जब दाढ़ी भी बढ़ने लगी तो पिताजी ने डांट पिला दी, यह क्या देवदास बने फिर रहे हो, जाओ दाढ़ी बनाकर आओ। पिताजी के सामने कभी हमारा मुंह नहीं खुला, मन मसोसकर रह गए। लेकिन मन ही मन बड़बड़ाते रहे, पिताजी क्या जानें, बिना दाढ़ी के कोई येसुदास नहीं बनता।
कभी दाढ़ी फैशन थी, आज तो दाढ़ी का ही प्रचलन है।
कबीर बेदी की दाढ़ी बड़ी स्टाइलिश थी। क्या जोड़ी थी कच्चे धागे में विनोद खन्ना और कबीर बेदी की। बेचारे संत महात्मा तो दाढ़ी बढ़ाकर भूल जाते हैं, लेकिन जो लोग शौकिया दाढ़ी रखते हैं, उन्हें तो दाढ़ी का बच्चों जैसा खयाल रखना पड़ता है। ब्यूटी पार्लर से महंगे होते जा रहे हैं आजकल मैन्स पॉर्लर।
वैसे हमें क्या, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। ।
बिग भी, हमारे नरेंद्र मोदी और विराट कोहली तीन टॉप के दाढ़ी वाले हैं आज के इस युग के। विराट की स्टाइल की कॉपी ने तो पुराने फैशन के सभी रेकॉर्ड तोड़ दिए हैं। सोलह बरस की बाली उमर से ही आज के युवा में विराट की छवि नजर आने लगती है।
आज के युवा अभिनेता हों या क्रिकेट प्लेयर, कॉलेज का छात्र हो या प्रोफेसर, टॉप एक्जीक्यूटिव और मोटिवेशनल स्पीकर, सभी जगह दाढ़ी वाले ही नज़र आएंगे आजकल।
वैसे मनोविज्ञान तो यही कहता है कि पुरुष भी किसी महिला के लिए ही सजता, संवरता है। जरूर आज की युवतियों की भी पहली पसंद दाढ़ी वाले युवा ही होंगे। बुढ़ापे में तो दाढ़ी इंसान के कई ऐब छुपा लेती है। किस दाढ़ी में साधु है और किस दाढ़ी में शैतान, यह तो सिर्फ भगवान ही जानता है।
कभी अभिनय के लिए नकली दाढ़ी लगाते थे, आज तो असली दाढ़ी ही अभिनय के काम आती है। जो दाढ़ी में भी सहज और सरल है, बस वही सच्चा साधु है। ।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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