श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पलटवार”।)
अभी अभी # 204 ⇒ पलटवार… श्री प्रदीप शर्मा
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यहां वार की पहल नहीं की गई है। पहले किसी और ने वार किया है। पलटवार को आप जवाबी हमला भी कह सकते हैं। यहां हम अहिंसक रहते हुए, केवल मौखिक हमलों की ही चर्चा करेंगे। जो नीति और रणनीति की बातें करते हैं उनकी बात अलग है, क्योंकि उनका ब्रह्म वाक्य ही यह होता है ;
Art of Defence
is to attack.
आपको आश्चर्य होगा, वार भी दो तरह के होते हैं। एक होता है अंग्रेज़ी का वॉर (war) जिसका अर्थ सिर्फ युद्ध होता है, फिर चाहे वह वर्ल्ड वॉर हो अथवा रूस यूक्रेन और इसराइल हमास वॉर।
लेकिन हमारी हिंदी का वार कभी खाली नहीं जाता। सप्ताह में अगर सात दिन होते हैं, तो सात ही वार होते हैं, कोई भी खाली वार हो तो बताइए। बस, एक रविवार की जरूर छुट्टी हो जाती है। भारतीय परिधान साड़ी कितने वार की होती है, गूगल कर लें।।
हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में कभी युद्ध नहीं होता, सिर्फ धर्मयुद्ध होता है। जब भी धर्म की हानि होती है, मैं अवतार लेता हूं ;
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
जब तक हम पर युद्ध नहीं थौंपा जाता, हम कभी युद्ध नहीं करते। लेकिन अगर दुश्मन वार करेगा, तो हम उसे दूसरा गाल ऑफर करने से तो रहे। वो क्या कहते हैं उसे, शठे शाठ्यम् समाचरेत् ! यह हमारी नहीं, विदुर नीति है। वार का पलटवार तो कुश्ती में भी होता है, और शास्त्रार्थ में भी।
रामायण और महाभारत सीरियल में कैसे अस्त्र, दिव्यास्त्र और ब्रह्मास्त्र छोड़े जाते थे। इधर से वार तो उधर से पलटवार। बस एक ब्रह्मास्त्र ही लाजवाब था, जिसके आगे नतमस्तक होना पड़ता था। राजनीति तो छोड़िए जनाब, यहां तो हमने लोगों को नजरों के तीर भी कस कसकर मारते देखा है। वैदिक हिंसा की तरह ही इसे भी हिंसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां तो तीर खाने वाला ही फरियाद करता नजर आता है ;
तीर आंखों से, जिगर के
पार कर दो यार तुम।
जान ले लो, या तो जां को
निसार कर दो यार तुम।।
बचपन में हमने भी बहुत वाकयुद्ध खेला है। बहुत वार और पलटवार किए हैं। उधर से पहला वार, तू चोर। देखिए हम कितने शरीफ, तू महाचोर से ही जवाब दे दिया। लेकिन जब उधर से प्रत्युत्तर में, तेरा बाप चोर, आया तो हमने भी कोई चूड़ियां नहीं पहन रखी थी। हमने भी पलटवार किया, तू गधा, तेरा बाप गधा, तेरा पूरा खानदान चोर। कभी हाथापाई भी होती और कभी बीच बचाव भी। लेकिन कुछ समय बाद, वही, एक दूसरे के गले में हाथ डाले घूम रहे हैं, चोर और महाचोर।
लेकिन अफसोस, इस आज की राजनीति ने तो हमारे बरसों की दोस्ती पर भी डाका डाल दिया है। फेसबुक पर दोस्त बनते हैं, राजनीतिक मतभेद के चलते, और स्वस्थ संवाद के अभाव में ब्लॉक और अनफ्रेंड करने की नौबत आ जाती है।।
रिश्तों में राजनीति, खेल में राजनीति, सामाजिक जीवन में राजनीति। वही वार और पलटवार। अच्छे भले भले मानुस, यानी जैन्टलमैन्स गेम क्रिकेट के मुकाबले को पहले तो धर्मयुद्ध बना दिया और उसके बाद सत्ता और विपक्ष का जो वार और पलटवार शुरू हुआ, वह बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा। आप हम कौरव पांडव बने, शकुनि के पासों में उलझे हुए हैं।
हमें आजकल आरपार की लड़ाई का बहुत शौक है। जब तक वार चलता रहेगा, पलटवार भी चलता रहेगा। इनके बीच, आज कोई राजकपूर जैसा दीवाना नहीं, जो आकर कह दे ;
तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय।
ना तुम हारे, ना हम हारे..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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