श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मंगती बिल्ली”।)
अभी अभी # 206 ⇒ मंगती बिल्ली… श्री प्रदीप शर्मा
बिल्ली यों तो कहने को शेर की मौसी है, लेकिन स्वभाव से बड़ी डरपोक होती है।
चोरी जरूर करती है, लेकिन कभी सीना जोरी नहीं करती। यहां वहां दुबक कर पड़े रहने वाले इस प्राणी की गिनती आवारा पशुओं में नहीं होती। कचरे में मुंह मारने की अपेक्षा यह दूध और मलाई में ही मुंह मारना पसंद करती है।
यह कुत्ते की तरह कभी भौंकती नहीं, तेरी मेरी सभी की बिल्ली, सिर्फ म्याऊॅं ही करती है। एक कुत्ते की तरह यह भी न तो घर की ही है, न किसी घाट की।
वैसे यह जंगली भी हो सकती है, और पालतू भी, लेकिन कुत्ते की तरह स्वामिभक्ति और वफादारी इसके खून में नहीं। यह शातिर भी हो सकती है और मौका आने पर खूंखार भी। फिर भी विदेशों में इसे बड़े शौक से पाला जाता है। ।
यह बड़ी सफाई पसंद होती है। दिन में इसे सिर्फ सड़कों पर लोगों का रास्ता काटते देखा जा सकता है, रात के अंधेरे में यह चूहों का शिकार करने के बहाने आपके घरों में घुसती है, और लगे हाथ दूध पर भी हाथ साफ कर देती है। यह कभी कुत्ते की मौत नहीं मरती। लेकिन निश्चिंत रहिए, हम आपको सोने की बिल्ली वाली कहानी नहीं सुनाने वाले।
बिल्ली एक रहस्यमयी प्राणी है। इसका उपयोग जादू टोने और रामसे ब्रदर्स के भुतहे बंगलों में बहुत हुआ है। लालटेन वाला चौकीदार, पुराने दरवाजे की चरचराहट की आवाज, रात के अंधेरे में चमगादड़, और काली बिल्ली की चमकती डरावनी आंखों के बीच फिल्म गुमनाम का गीत, गुमनाम है कोई, अनजान है कोई, और एक लाश, दर्शकों को डराने के लिए काफी होता था। ।
लेकिन फिर भी शहर में आज भी ऐसे कई मोहल्ले और बस्तियां हैं, जहां घरों में बिल्लियां आजादी से, बेखौफ घूमती हैं। पुराने घरों के जीर्ण शीर्ण कमरों और अनुपयोगी फर्नीचर और सामान के बीच वे ना केवल अपना आशियाना बना लेती हैं, अपितु अपने वंश वृद्धि के लिए भी इस जगह का उपयोग करती रहती हैं।
बड़े प्यारे होते हैं, कुत्ते बिल्ली के बच्चे। जब इंसान बच्चों के साथ बच्चा बन जाता है तो उसकी भेद बुद्धि खत्म हो जाती है। केवल एक नादान बच्चा ही निडर होकर शेर के मुंह में हाथ डाल सकता है। हर इंसान का बच्चा, शेर बच्चा होता है। आखिर शेर का बच्चा भी तो शेर बच्चा ही होता है। ।
एक बार अगर कोई बिल्ली म्याऊं-म्याऊं करती घर में प्रवेश कर गई, तो फिर वह घर की ही होकर रह जाती है। उसका अनुनय विनय अधिकार में परिवर्तित हो जाता है। वह भी घर के अन्य बच्चों की तरह दूध की मांग करने लग जाती है। जो अपने बच्चों से करे प्यार, वह बिल्ली को दूध देने से कैसे करे इंकार। बस इसी तरह एक बिल्ली पालतू बन जाती है, सबकी मुंहलगी बन जाती है।
क्या बिल्ली बेशर्म भी होती है। अभी हाल ही में, एक साधारण से होटल में जब सुबह सुबह हम पोहे लेने गए, तो होटल के बाहर ही एक बिल्ली ने हमारा म्याऊं म्याऊं कहकर स्वागत किया। हम उसे अनदेखा करते हुए अंदर होटल में जाकर बैठ गए। बिल्ली का म्याऊं म्याऊं का राग जारी था। कुछ ही समय में वह हमारे पास अंदर आ गई और शिकायत के अंदाज में म्याऊं करती रही। ।
मान न मान, मैं तेरा मेहमान। होटल का मालिक बैठा है, मांगना है तो उससे मांग। हम तो ग्राहक हैं। लेकिन तब तक तो बिल्ली की आवाज ने पूरी होटल सर पर उठा ली थी। मालिक ने बताया, आज अभी तक दूध नहीं आया है। पहले दूध वाला इसे बाहर दूध देता है, उसके बाद ही होटल में प्रवेश कर पाता है। क्या कहेंगे इसे आप, बेशर्मी, दादागिरी अथवा दैनिक हफ्ता वसूली।
जब तक दूध वाला नहीं आएगा, हर ग्राहक के पास जा जाकर हमारी शिकायत करती फिरेगी। सालों से हिली हुई है, न मार सकते, न भगा सकते। हमारे मुंह से भी निकल ही गया, अच्छी बेशर्म और मंगती बिल्ली पाल रखी है आपने। खैर, दूध वाला नहीं आया सो नहीं आया। हमने काउंटर पर पैसे दिए, और अपना रास्ता नापा। बिल्ली की हमसे शिकायत जारी थी। हमें जाते जाते भी उसकी म्याऊं म्याऊं सुनाई दे रही थी। बेचारी बेशर्म, मंगती बिल्ली !
© श्री प्रदीप शर्मा
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