श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जहाज का पंछी…“।)
अभी अभी # 221 ⇒ जहाज का पंछी… श्री प्रदीप शर्मा
मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे जहाज का पंछी, उड़ि उड़ि जहाज पर आवै।।
एक जहाज के पक्षी को तो उड़ने के लिए उन्मुक्त आकाश है, उसके तो पर भी हैं, लेकिन फिर भी थक हारकर उसे वापस जहाज पर ही आना पड़ता है, उसके अलावा कहां उसका ठौर ठिकाना। मीलों दूर तक कोई जीवन नहीं, वन जंगल, बाग बगीचा नहीं।
ठीक ऐसी ही स्थिति हमारे मन की होती है। घर संसार और अपने सगे संबंधी, यार दोस्त और जमीन जायदाद में हम इतने उलझे हुए होते हैं, कि हमारे मन की स्थिति भी एक जहाज के पंछी के समान हो जाती है, बार बार वह घर संसार की ओर ही रुख करता है।।
सैर सपाटा, घूमना फिरना किसे पसंद नहीं। बहुत इच्छा होती है, रोज की कामकाज भाग दौड़ भरी जिंदगी से फुर्सत निकालकर कुछ समय पहाड़ों और प्राकृतिक स्थानों के बीच गुजारा जाए। कितनी मुश्किल से वह पल आता है, जब परिवार के सदस्यों के चेहरे पर खुशी छा जाती है, यह जानकर कि हम सब छुट्टियां बिताने बाहर जा रहे हैं।
कितनी जल्दी कट जाते हैं सुख के पल। कभी वक्त ठहरा सा नजर आता है, तो कभी लगता है, वक्त के भी पंख लग गए हैं। खट्टे मीठे अनुभवों को ही हमारे यहां पर्यटन कहा जाता है। बहुत ही जल्द अनुभवों का खजाना और यादगार तस्वीरों के साथ आखिरकार घर लौटना ही पड़ता है।।
घर से बाहर जाने का उत्साह और वापस घर आने की खुशी को केवल महसूस किया जा सकता है। अगर अनुभव कटु रहे, तो लौटकर बुद्धू घर को आए, अन्यथा हमारी स्थिति भी एक जहाज के पंछी की तरह ही होती है। घर तो आखिर घर होता है।
जो गुरु नानक देव जैसे समर्थ गुरु होते हैं, वे इस भव संसार से पार उतरने के लिए किसी जहाज अथवा हवाई जहाज का सहारा नहीं लेते, केवल मात्र नाम स्मरण ही उनका जहाज होता है, सिमर सिमर उतरै पारा।।
जिन्हें गुरु नानक की तरह इस भव सागर से अपनी नैया पार लगाना है, केवल उनके लिए ही तो बना है, नानक नाम जहाज। केवल जहाज के पंछी को ही अपने असली घर की तलाश होती है बाकी पंछी तो आजाद है, स्वच्छंद हैं, अपना जीवन जीने के लिए।
शैलेंद्र भूल गए, जहां हमें खुदा से मिलने के लिए वे पैदल भेज रहे हैं, वहां बीच में सागर भी है। शैलेंद्र एक कवि हृदय नेक इंसान थे, आम आदमी की बातें करते थे। गुरु नानक देव तो सर्वज्ञ थे, जिन्हें पार उतरना हो, वे नानक नाम जहाज की सवारी करें, जिन्हें पैदल आना है, उनका भी स्वागत है ;
कहत कबीर सुनो भई साधो
सतगुरू नाम ठिकाना है
यहां रहना नहीं,
देस बिराना है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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