श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “विचारों की फसल…“।)
अभी अभी # 246 ⇒ विचारों की फसल… श्री प्रदीप शर्मा
फसल खेत में उगती है, आसमान में नहीं। ईश्वर ने मनुष्य को सोचने समझने और विचार करने की शक्ति दी है, और सोचने के लिए दिमाग दिया है।
बिना मिट्टी के कोई देश नहीं बना, कोई इंसान नहीं बना। साहिर तो यहां तक कह गए हैं कि;
कुदरत ने बख्शी थी
हमें एक ही धरती।
हमने कहीं भारत
कहीं ईरान बनाया।।
जिन पांच तत्वों से यह संसार बना है, उन्हीं पांच तत्वों से हमारा शरीर भी बना है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, ये ही पांच तत्व हमारे शरीर में भी मौजूद हैं। हम गलत नहीं कहते, जब किसी को देखकर यह कहते हैं, किस मिट्टी के बने हो यार।
सोचने विचारने का काम हमारा मस्तिष्क यानी दिमाग करता है, मिट्टी से बड़ा कोई उर्वरक पदार्थ इस पृथ्वी पर है ही नहीं, और यही पृथ्वी तत्व हमारे मस्तिष्क में भी है, और शायद इसीलिए इसमें हर पल विचार आते जाते रहते हैं। कितना स्टोरेज है ब्रेन का, कोई नहीं जानता। विचारों की कितनी फसल हम ले चुके है, और कितनी लेते रहेंगे, इसका कोई हिसाब नहीं। मस्तिष्क कब आराम करता है, और कब यह सोचना शुरू करता है, कहना मुश्किल है।।
नदी के प्रवाह की तरह विचारों का प्रवाह भी होता है, जो सतत प्रवाहित होता रहता है। नदी की तरह विचारों पर भी बांध बनते हैं, नहरें निकलती है, विचारों से भी बिजली निकलती है, ज्ञान के दीप जलते हैं। कभी कभी तो जब विचारों का बांध टूटता है, तो तबाही मच जाती है, समाज में अराजकता और अनैतिकता का तांडव शुरू हो जाता है।
एक समझदार किसान तो बंजर जमीन पर भी हल जोतकर, अच्छी हवा, पानी और बीज के सहारे उसे उपजाऊ बनाकर खेती कर लेता है, रात रात भर जाग जागकर उसकी जंगली जानवरों और चोरों से रखवाली करता है, तब उसे परिश्रम का फल मिलता है, उसकी फसल कटकर तैयार होती है। बस विचारों का भी ऐसा ही है।।
विचार भी तो बीज रूप में ही होते हैं। अगर उन्हें भी अच्छी मिट्टी, खाद, हवा, पानी और देखभाल मिल जाए, तो वे भी पल्लवित हो वाणी अथवा लेखनी द्वारा प्रकट होते हैं, कहीं कविता की निर्झरिणी प्रकट होती है, तो कहीं शाकुंतल और मेघदूतम् के रूप में कालिदास प्रकट होता है।
वनस्पति जगत की तरह ही है, यह पूरा विचारों का भी जगत। कहीं जंगल तो कहीं हरियाली, कहीं शालीमार और निशात जैसे बाग बागीचे, तो कहीं देवदार के तने हुए पेड़।
कथा, कहानी, उपन्यास, काव्य, महाकाव्य, श्रुति, स्मृति और पुराण का बड़ा ही रोचक और ज्ञानवर्धक है यह विचारों का जगत।।
सृजन ही जीवन है। फूलों की घाटी की तरह विचारों के इस उपवन में कई विचारों के फूल खिलते हैं, मुरझा जाते हैं। एक अच्छा लेखक यहां विचारों की खेती भी कर लेता है और रबी और खरीफ की फसल भी उठा लेता है। कहीं बड़े धैर्य और जतन से रचा उपन्यास नजर आता है, तो कहीं उपन्यासों की पूरी की पूरी अमराई।
एक अच्छा विचार अगर मानवता को जीने की राह दिखाता है तो एक खराब विचार पूरी नस्ल को बर्बाद भी कर सकता है। विचारों के इस देवासुर संग्राम में कहीं शुक्राचार्य बैठे हैं तो कहीं चाणक्य, महात्मा विदुर और उद्धव जैसे आचार्य। अन्न से हमारे मन को जोड़ा गया है। अच्छे विचारों का भी मन पर अच्छा ही प्रभाव पड़ता है। सांस को तो प्राणायाम द्वारा संयमित और शुद्ध किया जा सकता है, विचारों की शुद्धि तो आचरण की शुद्धि पर ही निर्भर होती है। इसके लिए मन, वचन और कर्म से एक होना जरूरी है।।
पूरी विचारों की फैक्ट्री आपके पास है। मिट्टी, हवा, पानी की कुछ कमी नहीं। चाहे तो प्रेम की बगिया लगाएं अथवा आस्था और विश्वास का पेड़। अगर आम बोएंगे तो आम ही पाएंगे और अगर बबूल बोया तो बबूल। कबीर यूं ही नहीं कह गए ;
जो तोकू कांटा बुए
ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल है
बाको है त्रिशूल।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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