श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चाॅंद और चाॅंद…“।)
अभी अभी # 247 ⇒ चाॅंद और चाॅंद… श्री प्रदीप शर्मा
चाॅंद को देखो जी ! आपने बदली का चांद तो देखा ही होगा, घूंघट के चांद के अलावा कुछ लोग ईद के चांद भी होते हैं, लेकिन इसके पहले कि हम चौथे चांद का जिक्र करें, जरा अपने सर पर हाथ तो फेर लीजिए, कहीं यह चौथा चांद आपके सर पर ही तो नहीं।
हम जब छोटे थे, तो सबके सर पर बाल होते थे। लोग जब हमारे सर पर प्यार से हाथ फेरते, तो बड़ा अच्छा लगता था। हमारे बाल बड़े होते तो कटवा दिए जाते थे, और दीदी के बाल जब बड़े होते थे, तो उसकी चोटी बनाई जाती थी। हम उसको दो चोटी वाली कहकर चिढ़ाते थे। डांट भी पड़ती थी, मार भी खाते थे।।
बालों को अपनी खेती कहा गया है। हम जब गंजों को देखते थे, तो सोचा करते थे, इनके बाल कहां चले गए। इस मासूम से सवाल का तब भी एक ही जवाब होता था, उड़ गए। लेकिन तब भी हम कहां इतने मासूम थे। क्योंकि हमने तो सुन रखा था नया दौर का वह गाना, उड़े जब जब जुल्फें तेरी। यानी उनकी तो जुल्फ उड़े, और हमारे बाल। वाह रे यह कुदरत का कमाल। उधर सावन की घटा और इधर पूरा सफाचट मैदान।
कल चमन था, आज एक सहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ ! हम रोज सुबह जब आइना देखते हैं, तो अपने बाल भी देखते हैं। पुरुष काली घटाओं और रेशमी जुल्फों का दीवाना तो होता है, लेकिन खुद बाबा रामदेव की तरह लंबे बाल नहीं रखना चाहता। खुद तो देवानंद बनता फिरेगा और देवियों में साधना कट ढूंढता फिरेगा।।
चलिए, पुरुष तो शुरू से ही खुदगर्ज है, महिलाएं ही हमेशा आगे आई हैं और पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते चलते बहुत आगे निकल गई हैं। उनके बाल छोटे लेकिन कद बहुत ऊंचा हो गया है। आज का सामाजिक दायित्व और बढ़ती चुनौतियां उससे यह कहती प्रतीत होती हैं ;
जुल्फें संवारने से
बनेगी ना कोई बात।
उठिए, किसी गरीब की
किस्मत संवारिये।।
ईश्वर इतना निष्ठुर भी नहीं !
अगर वह पुरुष के सर के बाल उड़ा रहा है तो क्षतिपूर्ति स्वरूप उसे दाढ़ी और मूंछ भी तो प्रदान कर रहा है। अक्सर पहलवान गंजे और मूंछ वाले होते हैं। और दाढ़ी की तो पूछिए ही मत, आजकल तो दाढ़ी ही मर्द की असली पहचान है। क्यों ऐश्वर्या और अनुष्का और कल की गुड्डी और आज की बूढ़ी जया जी, कि मैं झूठ बोलिया? अजी कोई ना।
कहने की आवश्यकता नहीं, लेकिन खुदा अगर गंजे को नाखून नहीं देता तो स्त्रियों को भी दाढ़ी मूंछ नहीं देता। बस अपने चांद से चेहरे पर लटों को उलझने दें। यह पहेली तो कोई भी सुलझा देगा।।
कहते हैं, अधिक सोचने से सर के बाल उड़ने शुरू हो जाते हैं। बात में दम तो है। सभी चिंतक, विचारक, दार्शनिक, वैज्ञानिक संत महात्मा इसके ज्वलंत प्रमाण हैं।
गंजे गरीब, भिखमंगे नहीं होते, पैसे वाले और तकदीर वाले होते हैं। जब किसी व्यक्ति का ललाट और खल्वाट एक हो जाता है, तो वहां प्रसिद्धि की फसल पैदा होने लगती है। तबला दिवस तो निकल गया, मेरा नाती फिर भी मेरी टक्कल पर तबला बजाता है। लगता है, मेरे भी दिन फिर रहे हैं। सर पर मुझे भी सफाचट मैदान नजर आने लगा है। मैं पत्नी को बुलाकर कहता हूं, तुम वाकई भागवान हो।
सर पर बाल रहे ना रहे, बस ईश्वर का हाथ सदा सर पर रहे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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