श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “सारी रिसर्च एक तरफ“।)
राग दरबारी का मुख्य पात्र रंगनाथ रिसर्च करने को घास खोदना कहता है ! मैं उससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता। एक शहरी बुद्धिजीवी होने के नाते, रिसर्च के लिए मेरे मन में बहुत श्रद्धा है। अब चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ आने के साथ ही 15-20 लाख का पैकेज पाने वालों से तो आप रिसर्च करने की उम्मीद नहीं ही लगा सकते। कुछ न करने से रिसर्च भली।
रिसर्च वैज्ञानिक भी करते हैं !
अनुसंधान और खोज भी रिसर्च के ही अंग हैं। हम अगर विज्ञान से अपना ध्यान हटाएँ, तो खोज ही रिसर्च प्रतीत होती है। वैसे खोजने और खोदने में ज़्यादा फ़र्क नहीं ! लेकिन खोदने में घास खोदने जितना परिश्रम लगता है। खोजने में तुलनात्मक रूप से कम मेहनत लगती है। ।
रिसर्च के लिए पहले गाइड तलाशा जाता है, या विषय ! यह रिसर्च का विषय नहीं। गाइड ही विषय, और विषय संबंधी सहित्य उपलब्ध कराता है। कितनी लाइब्रेरियों की ख़ाक छाननी पड़ती है, गाइड महोदय की न केवल पर्सनल लाइब्रेरी करीने से जमानी पड़ती है, सब्जी लाने से लेकर, कई तरह के पापड़ भी बेलने पड़ते हैं।
रिसर्च करने को साहित्यिक भाषा में पीएचडी करना कहते हैं। इस दौरान गाइड गुरु द्रोणाचार्य हो जाते हैं, और रिसर्च स्कॉलर एकलव्य ! गाइड द्रोणाचार्य शिष्य एकलव्य का सिर्फ अँगूठा ही छोड़ देते हैं गुरु-दक्षिणा में। ।
आजकल के शिष्य भी कम नहीं ! एक बार डॉक्टरेट हासिल हुई, फिर उनके तेवर बदल जाते हैं। काहे के गाइड ! गरज़ थी, इसलिए गधे को गाइड बना लिया। उसको आता-जाता क्या है। सिर्फ़ साइन करने के पैसे लेते हैं। ऐसे खुदगर्ज़ शिष्यों के प्रति मेरे मन में कतई श्रद्धा नहीं ! गाइड बिन पीएचडी कहाँ से पावै।
एक बार रिसर्च पूरी होने पर वह स्कॉलर डॉक्टर कहलाने का लाइसेंस प्राप्त कर लेता है। विभागों में उसकी पदोन्नति के रास्ते खुल जाते हैं। पत्नी भी उन्हें डॉक साहब कहने में गर्व महसूस करती है। ।
आजकल की पीढ़ी की लत अध्ययन की नहीं है। उसका ज्ञान रोजगारोन्मुखी है। एक बार अच्छे पैकेज मिलने के बाद उसके ज्ञान-चक्षु खुलने का नाम ही नहीं लेते। पढ़ने-पढ़ाने और रिसर्च की सारी जिम्मेदारी गूगल सर्च ने जो ले ली है।
कौन रात भर बल्ब की रोशनी में बैठकर किताबों के पन्ने पलटता है आजकल ! सबकी मुट्ठी में एंड्राइड का चिराग जो आ गया है। उसे तो घिसने की भी ज़रूरत नहीं। जो हुक्म आका की तरह आदेश दें, और गूगल ज्ञान हाज़िर। हर गूगल सर्च करने वाला किसी रिसर्च स्कॉलर से कम नहीं। एक चलता-फिरता महा विद्यालय, विश्व- विद्यालय, कैंब्रिज, हार्वर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड जब आसानी से उपलब्ध हो, तो किसी गाइड की भी दरकार क्यों। ।
सारी रिसर्च एक तरफ,
गूगल सर्च एक तरफ़ …!!!
♥ ♥ ♥ ♥ ♥
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈