श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “साहब,  … और गुलाम ।)

?अभी अभी # 310 ⇒ साहब,  … और गुलाम? श्री प्रदीप शर्मा  ?

हमारी संस्कृति में हमेशा राजा, रानी और प्रजा ही होते थे, साहब, बीवी और गुलाम नहीं। हमने हमेशा राजा को महाराजधिराज ही कहा है, राजा साहब नहीं। महाभारत के युग में, जब हमारे धर्मराज अपने भाइयों के साथ चौपड़ का खेल खेलते थे, तो कौड़ियां तो होती थीं, खेल में हार जीत भी होती थी। अगर शकुनि का दांव चल गया तो महाराज भी गुलाम और उनकी रानी भी गुलाम। बस यही खेल अंग्रेजों ने हमारे साथ खेला। राजा साहब शिकार खेलते रह गए, देश गुलाम होता चला गया। साहब, बीवी और गुलाम।

फिर हमने कौड़ियों के मोल में आजादी खरीद ली। राजतंत्र लोकतंत्र हो गया। राजा, रंक और रंक राजा होते चले गए। देश में साहबों और सेवकों का राज हो गया। पहले साहब सिविल सर्वेंट कहलाते थे, अब वे शासकीय सेवक हो गए। राजा ना सही, नेता ही सही, राज करेगा खालसा। ईश्वर और गीता की शपथ लेने वाले संविधान की शपथ भी लेने लग गए। देश विधि के विधान के अनुसार नहीं, संविधान के अनुसार चलने लगा।।

जनता जिसे नेता चुनेगी, वही उस पर राज करेगा। अगर सिर पर ताज नहीं तो कैसा राजा, और आजादी के बाद, नेताओं ने टोपी पहननी शुरू कर दी। पहनी भी और पहनाई भी। जब टोपियां कम और सर अधिक हो गए तो नेताओं का त्याग देखिए, खुद तो हार फूल पहनने लगे, और अपनी टोपी उतारकर जनता को पहना दी।

हमने बुरे दिन भी देखे और सुनहरे दिन भी। सपने भी देखे और कुछ सपनों को सच होते भी देखा। नौकरी में किसी के साहब भी बने और किसी के सेवक भी। अपने स्वाभिमान से हमने कभी समझौता नहीं किया। जब भी सत्ता निरंकुश हुई, अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ी, सत्ता परिवर्तन भी हुए और हमेशा लोकतंत्र की ही जीत हुई।।

होते हैं कुछ विघ्नसंतोषी जिन्हें जब सत्ता की बंदरबांट में कुछ हासिल नहीं होता, तो वे उछलकूद मचाने लगते हैं। लेकिन ये मर्कट भूल जाते हैं कि इनकी डोर एक मदारी के हाथ में है। वह जैसा चाहे इन्हें नचा सकता है। जो कुशल नेता, जनता की नब्ज जानता है, वह इन प्राणियों का भी इलाज जानता है।

मानस वचन भी तो यही कहता है, भय बिनु होइ ना प्रीति। कभी सत्ता के पास इन विरोधियों की फाइल हुआ करती थी, कब किसकी फाइल चुनाव के वक्त खुल जाए, कहा नहीं जाए। स्कैंडल, घोटाले और गबन राजनीति में आम बात है।।

काजल की कोठरी में तो सभी के दाग लग जाता है। अगर सत्ता की सीढ़ी पर बेदाग चढ़ना है तो किस किस से बचकर चलें। और किसी से बचने का एकमात्र उपाय, शरणागति भाव। इसे ही आज की राजनीति की भाषा में साहब … और गुलाम कहा जाता है ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments