श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ये मत किसको दूं…“।)
अभी अभी # 312 ⇒ ये मत किसको दूं… श्री प्रदीप शर्मा
चुनाव और परीक्षा का मौसम अक्सर साथ साथ ही आता है। बच्चे परीक्षा में पेपर देते हैं, हम चुनाव में मत देते हैं। परीक्षा में उत्तीर्ण होने से बच्चों का भविष्य बनता है, हमारे मतदान से देश का भविष्य संवरता है। जितनी आवश्यक एक बच्चे के लिए परीक्षा है, उतना ही जरूरी एक आम मतदाता के लिए मतदान है।
जितना बच्चों का भविष्य कीमती है उतना ही कीमती हमारा मत भी है।
एक मत की कीमत आंकना इतना आसान भी नहीं। मत की संख्या से ही कहीं अल्पमत है, तो कहीं बहुमत। वैसे भी मत से मतलब केवल चुनाव तक ही रहता है, मतलब निकल गया है, तो पहचानते नहीं।।
कहते हैं, मतदान सोच समझकर, योग्य उम्मीदवार को ही नहीं, पार्टी को देखकर भी देना चाहिए। एक समय वह भी था जब हम वोट नहीं देते थे मोहर लगाते थे। तब हमारे वोट की कीमत वैसे भी किसी मोहर से कम नहीं होती थी। अब हम मोहर से बटन पर आ गए हैं। उंगली कटाकर नहीं, उंगली रंगाकर अब हम देश का भविष्य लिखने लगे हैं।
देश अगर मजबूत है, तो उसे और मजबूत बनाना है, जो सरकार मजबूत है, उसे और मजबूत बनाना है। अगर आप नहीं बनाएंगे तो आपके चुने हुए प्रतिनिधि बनाएंगे। पहले आपको सब्जबाग दिखाएंगे, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएंगे, और मौका मिलते ही, बहती गंगा में हाथ धो आएंगे ;
आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् |
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ||.
अब आपको लोकतंत्र की इतनी चिंता भी नहीं करनी चाहिए, हां मतदान आपका अधिकार है, उसका उपयोग अवश्य करना चाहिए। आप किसी भी व्यक्ति, किसी भी पार्टी को वोट दें, बूंद को सागर में ही मिलना है। सब राममय है, अस्सी करोड़ झोपड़ियों के भाग्य तो खुल ही गए हैं, और सन् 2028 तक की गारंटी है। अब चुनाव में वादे नहीं किए जाते, गारंटी दी जाती है। अब राम आ गए हैं, अब राम आ गए हैं।।
सिया राम मय जग जानी..
आप मतदाता होकर मतदान कर रहे हो, दाता होकर, दान कर रहे हो, यानी उल्टी गंगा बहा रहे हो।
उम्मीदवार याचक बन भीख मांग रहा है, आपका मतदान ही उसके लिए वरदान है, कुछ पल के लिए ही सही, आप सर्व शक्तिमान हो।
दरियादिल बनें, मतभेदों को भूल अपने दिल की बात सुनें, दिमाग का उपयोग कम करें। मत ज्यादा सोच विचार करें, व्यवस्था से सहमत हों अथवा असहमत, मतदान अवश्य करें, लोकतंत्र को महा मजबूत करें।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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