श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मोहे भूल गये साॅंवरिया…“।)
अभी अभी # 328 ⇒ मोहे भूल गये साॅंवरिया… श्री प्रदीप शर्मा
भूलना सांवरिया अर्थात् पतियों की आम बीमारी है। दफ्तर जाते वक्त क्या क्या नहीं भूल जाते ये सांवरिया लोग। कभी रूमाल तो कभी चश्मा, कभी टिफिन तो कभी मोबाइल। वार त्योहार तो छोड़िए, कभी कभी तो वार भी भूल जाते हैं, रविवार को भी दफ्तर जाने की जल्दी मची रहती है। हाथ में गलती से शनिवार का अखबार आ गया तो शनिवार ही समझ बैठे।
भुलक्कड़ इंसान उम्र के साथ होता है अथवा शादी करने के पश्चात्, यह भी कोई पत्नी ही बता सकती है, क्योंकि उनकी ही यह आम शिकायत रहती है, आप तो ऐसे न थे। वैसे भी कौन याद रखता है शादी के पहले के वो वादे वो कसमें और वे इरादे।।
इस विषय में पतियों की अपेक्षा अगर पत्नियों की ओर मुखातिब हुआ जाए, तो ही बात बन सकती है, क्योंकि पति महोदय के पास तो एक ही रटा रटाया बहाना है ;
आज कल याद कुछ और
रहता नहीं।
एक बस आपकी याद
आने के बाद।।
एक बाज़ार का दृश्य देखिए। घर से सजनी और सावरिया एक स्कूटर पर सवार हो तफरी करने निकले हैं, बीच बाज़ार में स्कूटर रुकता है और सजनी जल्दी जल्दी किसी दुकान से सौदा लेकर वापस लौटती है। हेलमेटधारी सांवरिया स्कूटर में किक मारते हैं, और यह जा, वह जा।
वे यह मान बैठते हैं कि सजनी स्कूटर पर सवार हो गई हैं।
दुनिया यह तमाशा देख रही है। उधर सांवरिया को लोग घूर रहे हैं, कैसा इंसान है, पत्नी को बिना लिए ही चला गया। अगर ईश्वर भूले हुए सांवरिया को सद्बुद्धि दे देता है, तो पीछे मुड़कर देखते ही, उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाता है और वे कुछ दूर से ही पलटकर वापस आ जाते हैं, और अपना सामान ले जाते हैं। कहीं कहीं तो सांवरिया पीछे मुड़कर देखते ही नहीं और अकेले ही घर पहुंच जाते हैं।।
यह तो संस्मरण का मात्र एक सैंपल है, ऐसे संस्मरणों के तो कई संस्करण निकल सकते हैं। जहां सजनी और सावरिया में आपसी समझ होती है, वहां ऐसी भूल, कभी भूलकर भी नहीं होती। मोटर साइकिल पर तो वैसे भी सहारे के लिए साजन के कंधे पर हाथ रखना पड़ता है। जहां साथ में बच्चा भी होता है, वहां तो साजन पर पिता का भी अतिरिक्त दबाव होता है।
जिम्मेदारी इंसान को चौकन्ना बना देती है।
जब से घरों में कार आई है, सांवरिया को कार की चाबी भूलने की बीमारी हो गई है। कार में पेट्रोल का खयाल भी पत्नी को ही रखना पड़ता है और इंश्योरेंस का भी। वैसे जब कार में दोनों आगे बैठते हैं, तो गाड़ी चलाने के निर्देश भी सजनी ही दिया करती है। आगे स्पीड ब्रेकर है, गाड़ी धीमी करो, इतनी तेज मत चलाओ, सामने देखो, मुझसे बात मत करो। बस मेरी बात सुनो।।
कुछ ऐसे भी सांवरिया होते हैं जो अपना तो छोड़िए, अपनी सजनी का जन्मदिन भी याद नहीं रखते। बड़ा अफसोस होता है यह जानकर कि अपनी शादी की सालगिरह पर सजनी तो सज संवर रही है और सांवरिया दोस्तों के साथ महाकाल के दर्शन करने चल दिए हैं।
कोई इंसान यह कैसे भूल सकता है कि वह शादीशुदा है। ईश्वर हर सजनी को ऐसे सांवरिया से बचाए।
ऐसी स्थिति में वह यह गीत तो गा ही नहीं सकती, कि हो के मजबूर मुझे, उसने भुलाया होगा। वह तो बस यही कहेगी ;
ज़ुल्मी हमारे सांवरिया हो राम।
कैसे गुज़रेगी हमरी उमरिया हो राम।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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