श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मन अव चे तन…“।)
अभी अभी # 330 ⇒ मन अव चे तन… श्री प्रदीप शर्मा
तन और मन जहां है, वहां चेतन है। कोरा शरीर तो जड़ मात्र ही है, मन प्राण ही तो चेतन है। Animate चेतन है, unanimate जड़ है। प्राण तो पौधों वनस्पति में भी होते हैं, क्या उनमें भी मन होता है। चेतन तत्व तो कीट पतंग, पशु पक्षी सभी में होता है, वहां तन भी है और प्राण भी, लेकिन मन रूपी उपहार अथवा वरदान ईश्वर ने शायद सिर्फ मनुष्य को ही प्रदान किया है।
चेतना को संज्ञा भी कहते हैं। संज्ञा से ही संज्ञान शब्द बना है। ज्ञान ही बोध है, बोध ही बुद्धि है। मान न मान, इस दुनिया में केवल मनुष्य ही बुद्धिमान है।।
जब तक आप जागते हैं, आपको इस जगत का भान रहता है, लेकिन जैसे ही आप नींद के आगोश में चले जाते हैं, आपके लिए यह जगत, उस समय के लिए विलीन हो जाता है। गहरी नींद में तन और मन दोनों विश्राम करते हैं। लेकिन श्वास प्रश्वास का क्रम निरंतर चलता रहता है। ईश्वर द्वारा शरीर में लगाई गई यह टाइम मशीन है प्राण, जो हर पल छिन, टिक टिक नहीं, लगातार धक धक करती रहती है।
मुख्य रूप से चेतन मन की तीन अवस्थाएं होती हैं, चेतन, अवचेतन एवं अचेतन। conscious, semi conscious & unconscious जिसे आप जागृत, सुषुप्ति और अचेतावस्था भी कह सकते हैं। हम यहां सिर्फ अवचेतन मन की चर्चा कर रहे हैं। वैसे
आध्यात्मिक जगत में चेतना के कई सूक्ष्म स्तर होते हैं।।
हमारा चेतन मन जागृत अवस्था में संकल्प विकल्प करता है, जब कि स्वप्न में हमारी चेतना शून्य हो जाती है, और अवचेतन मन ड्यूटी पर उपस्थित हो जाता है। अवचेतन मन में अतीत की स्मृति, दबी हुई इच्छा, वासनाएं, महत्वाकांक्षाएं, हर्ष, विषादऔर भय की अवस्था एक ऐसे स्वप्न संसार की रचना करती है, जिसे हम सच मान बैठते हैं। वहां हमारी बुद्धि घास चरने जाती है, हमारा अपने मन पर और होने वाली घटनाओं पर कोई वश नहीं रहता। बस फिल्म देखते रहें, और जब नींद खुली, सपना समाप्त, खेल खतम, पैसा हजम।
जब स्वप्न रुचिकर होते हैं तो हमें अच्छे लगते हैं लेकिन जब अरुचिकर और डरावने होते हैं तो जागने के बाद हम असहज महसूस करते हैं। चित्त की अवस्था के अनुसार ही तो स्वप्न भी आएंगे। निर्मल मन और चित्त शुद्ध हो तो आपको ईश्वर और सद्गुरु दर्शन भी हो सकते हैं। कभी कभी स्वप्न में शुभ संकेत भी मिलते रहते हैं।।
मन के बारे में सूरदास जी का कहना है ;
मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥
लेकिन स्वप्न वाले अवचेतन मन को सुधि लोग मिथ्या ही घोषित करते नजर आते हैं। सपने देखना अच्छी बात नहीं लेकिन कल स्वप्न में अगर मेरी स्व.लता जी से बात हो गई, तो मेरा तो जीवन सफल हो गया। लोग सपने में भी जो सोच नहीं सकते, हमने वह स्वप्न आखिर देख ही लिया।
हम जानते हैं आपको तो हमारा सपना भी सच नजर नहीं आएगा, लेकिन सपने में हम कहां अपने आपे में रहते हैं। हमें भी भरोसा नहीं हुआ, यह सच है अथवा सपना। लेकिन जब जागे तब पता चला, यह एक दुर्लभ सुखद सपना ही था।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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