श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चलो सजना, जहां तक घटा चले…“।)
अभी अभी # 334 ⇒ चलो सजना, जहां तक घटा चले… श्री प्रदीप शर्मा
अगर आप किसी के, सजन, साजन, प्रेमी अथवा साथी हैं, तो घटा, सावन, बहार और मौसम से सावधान रहें, क्योंकि क्या भरोसा कब, आपकी सजनी से आपको बुलावा आ जाए।
कोई समय, मुहूर्त, अथवा दिन रात नहीं, बस उठो और, “चलो सजना, जहां तक घटा चले “। अब यह आग्रह है अथवा आदेश, पैदल चलना है अथवा गाड़ी से। एक और स्पष्ट हिदायत है, लगाकर गले।
प्रेम में सब चलता है। गौर कीजिए ! ओ साथी चल, मुझे लेकर साथ चल तू, यूं ही दिन रात चल तू। अजीब परेशानी है अगर मौसम सुहाना है, उधर उसको आपकी बांहों में आना है। यानी पहले गला, फिर बांह।।
आपको दफ्तर जाना है, अथवा कोई जरूरी काम करना है, उससे उसे क्या। सुनो सजना … इस तरीके से बोलेगी कि पूरी दुनिया सुन ले। सुनो सजना, पपीहे ने कहा सबसे पुकार के। अब ये पपीहा कोई दूध वाला अथवा सब्जी वाला है क्या, जो सुबह सुबह आवाज लगा रहा है। मानो कोई मॉर्निंग अलार्म हो। संभल जाओ, चमन वालों, कि आए दिन बहार के। डरा तो ऐसा रहा है, मानो आपातकाल लग रहा हो।
वाह रे पपीहे और वाह रे बहार।
यही हाल सावन की घटा और बरखा बहार का है। सावन तो जब भी आता है, झूम कर ही आता है।
जब भी काली घटा छा ती है तो प्रेम ऋतु ही आती है, और हां, साथ में तेरी याद जरूर आती है। ओ सजना, बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई, अंखियों में प्यार लाई।
यानी अब अपना पेट बस फुहार और प्यार से ही भरना है। थोड़ा मुफ्त राशन भी ले आती, तो घर का चूल्हा तो जलता।।
यहां तो ऐसी हालत हो रही है कि पूछो ही मत ;
नैनों में बदरा छाए,
बिजली सी चमके हाए
ऐसे में बलम मोहे, गरवा लगा ले ….
अब आप साजन नहीं बलम हो गए हैं, बीमारी बढ़ती जा रही है। बदरा, बिजली और चमक अब शरीर में उतर आई है,
और वेद तो आप सांवरिया ही हो। आ गले लग जा।।
जिनको आटे दाल का भाव नहीं पता, उनके लिए होगा लाखों का सावन, और साजन की नौकरी दो टंकियां की, लेकिन उधर, प्यार, बहार, सावन और बरखा से दूर एक सरस्वतीचंद्र भी है, जिसका यह मानना है कि ;
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए।
प्यार से जरूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं
आदमी के लिए।।
हमें तो इन सबकी काट शैलेंद्र में ही नजर आती है। सजनवा बैरी हो गए हमार और ;
सजन रे झूठ मत बोलो
खुदा के पास जाना है।
ना हाथी है, ना घोड़ा है
वहां पैदल ही जाना है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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