श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चाँद को देखो जी…“।)
अभी अभी # 353 ⇒ चाँद को देखो जी… श्री प्रदीप शर्मा
कल वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की संकट चतुर्थी थी। इस रोज महिलाएं विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत का पालन करती हैं। परिवार के सुख सौभाग्य की वृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है। रात्रि के नौ बज चुके हैं, कई चौदहवीं के चांदों की निगाह आसमान में लगी हुई हैं, लेकिन चतुर्थी के चंद्र, दर्शन हेतु अनुपलब्ध हैं। बिना चंद्र दर्शन के व्रत नहीं तोड़ा जाता, यह आसमान के चांद भी जानते हैं, लेकिन चांद से चेहरों से बादलों में लुका छिपी खेलने में शायद उनको आनंद आ रहा था।
जहां देखो वहां चांद तलाशा जा रहा था, खिड़की से, आंगन से, सड़क से, घर की छत और मल्टी की गगनचुंबी टैरेस से। फोन पर पड़ोसियों, सहेलियों और जानकर लोगों से जानकारी ली जा रही थी।
हम भी कभी आसमान की ओर देखते और कभी इन चंद्रमुखियों के चेहरे की ओर, चांद से चेहरे को चंद्रमा की बस एक झलक की आस थी।।
एक विशेषज्ञ महिला, जिनका व्रत नहीं था, वे फोन पर सभी सहेलियों को चांद के बारे में त्वरित जानकारी उपलब्ध करवा रही थी, और निःशुल्क परामर्श भी देती जा रही थी। अभी कानपुर फोन लगाया था, वहां चांद दिख गया है। पञ्चांग के अनुसार तो चन्द्र दर्शन का समय ८.३० बजे है, लेकिन नेट दस बजे का समय बता रहा है।
एक निगाह आसमान में चांद तलाश रही है, तो दूसरी मोबाइल में गड़ी हुई है। लेटेस्ट अपडेट तो वहीं से प्राप्त हो रहा है। कुछ कुछ करवा चौथ सा माहौल है। कुछ महिलाएं यह व्रत बचपन से करती चली आ रही हैं, तो कुछ ससुराल में आने के बाद।।
अगर चंद्रमा प्रसन्न हो जाए, तो बहू की गोद में चांद सा टुकड़ा आ जाए।
हमारी नारायण बाग वाली ९० वर्षीय वसुंधरा काकी भी चतुर्थी के दिन चांद देखकर ही उपवास तोड़ती थी। उन्हें दो कन्याओं के बाद एक सुपुत्र हुआ था, जिसका नाम उन्होंने चंद्रकांत रखा था। वह हमेशा स्वस्थ रहे, बस यही उनकी कामना थी। उनके चंद्र निवास में मेरा ३५ वर्ष निवास रहा।
हमारा मन भी चंद्रमा के समान ही चंचल है। मन को जप, तप और व्रत उपवास से ही काबू किया जा सकता है। चंद्रमा की शीतल किरणें हमारे मन को शांत करती हैं, सूरज का तेज कौन बर्दाश्त कर सकता है। जहां निशा है, रजनी है, वहां चंद्रमा है, चंचलता है, प्रेम है।।
समय कितना भी तेज भाग ले, भले ही इंसान मंगल ग्रह तक पहुंच जाए, हमारी भारतीय महिलाएं, समय के साथ कदम से कदम मिलाते हुए भी, अपने परिवार की सुख शांति के लिए व्रत, उपवास, और नियम संयम का कभी त्याग नहीं करने वाली। जिस घर में आज भी ऐसी कुशल गृहिणियां मौजूद है, वहां सदा के लिए सुख शांति की गारंटी है। तुमसे ही घर, घर कहलाया।।
बादलों में से चांद मुस्कुरा रहा है। खुशी खुशी व्रत का समापन हुआ, हमें बिना व्रत के ही प्रसाद मिल रहा है, व्रत फलदायी हो, इतनी कामना तो हम कर ही सकते हैं। चांद को देखो जी ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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