श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सर्कस“।)
हम लोगों ने बचपन में कॉमिक्स नहीं पढ़े, टीवी पर डिस्ने वर्ल्ड, पोगो और nicks जैसे बच्चों के प्रोग्राम नहीं देखे, नर्सरी राइम्स नहीं गाई, बस अमर चित्र कथा पढ़ी और पिताजी के साथ सर्कस देखा।
घर के पास ही तो था, चिमनबाग मैदान जहां अक्सर सर्कस का तंबू गड़ जाता था, जोर शोर से सड़कों, मोहल्लों पर प्रचार प्रसार होता था, आपके शहर में शीघ्र आ रहा है, खूंखार शेर के हैरतअंगेज कारनामे और मौत के कुएं में करतब दिखाते फटफटी सवार। दिल दहला देने वाले और मनोरंजन से भरपूर करतबों के साथ जेमिनी सर्कस। रोजाना दो शो ! दोपहर ३.३० बजे और शाम ६.३० बजे।।
दिन भर जानवरों के चीखने, चिंघाड़ने की आवाज तो घर तक ही सुनाई दे जाती थी। रात को सर्च लाइट के द्वारा पूरे शहर में रोशनी फैलाई जाती थी, और आखरी शो के सबसे अंतिम प्रोग्राम मौत के कुएं में फटफटी चलाने की आवाज भी हम घर बैठे ही सुन लेते थे।
सर्कस के करतबों में और सर्कस में चल रहे संगीत के बीच गजब का तालमेल रहता था। संगीत मन को न केवल एकाग्र ही करता है, अपितु भयमुक्त भी बनाता है। संतुलन में एकाग्रता चाहिए और सैकड़ों दर्शकों के बीच चाहे झूले के करतब हों, अथवा चलती साइकिल पर अविश्वसनीय व्यायाम बच्चों का खेल नहीं।।
फिल्मों में अभिनय होता है, ट्रिक फोटोग्राफी होती है, जो भी होता है, सिर्फ पर्दे पर होता है, लेकिन सर्कस का प्रदर्शन जीवन्त होता है, आंखों के सामने होता है, जहां हर पल खतरा ही खतरा है, गहरा जोखिम है। दुबली पतली, गुड़िया जैसी सुंदर लड़कियां सर्कस की जान होती हैं, लेकिन बड़ी सस्ती होती है, इनकी जान की कीमत।
बॉन्बे सर्कस को दुनिया का सबसे बड़ा सर्कस माना जाता है। द ग्रेट इंडियन सर्कस भारत का सबसे पहला सर्कस था जिसे विष्णुपंत मोरेश्वर द्वारा स्थापित किया गया था।हमारे शोमैन राजकपूर भी पीछे नहीं रहे। फिल्मी पर्दे पर भी मेरा नाम जोकर ले ही आए।।
राजकपूर की टीम भी बड़ी विचित्र थी। जूता जापानी, पतलून इंग्लिस्तानी, सर पर लाल टोपी रूसी उनकी टीम की असली पहचान थी, लेकिन दिल तो हिंदुस्तानी था, कोई शक ? और शायद इसीलिए मेरा नाम जोकर में हमें रशियन पात्र नजर आते हैं, और नजर आती है प्रेम कहानी, जो राजकपूर की कमजोरी है।
सिर्फ मेरा नाम जोकर का ही नहीं, आवारा और श्री४२० का भी रशिया में।खूब प्रचार हुआ। राजकपूर की टीम का रूस में भव्य स्वागत हुआ। हमारा देश, आय लव माय इंडिया तो बहुत समय बाद हुआ है। लेकिन कोई इंसान एक शोमैन यूं ही नहीं बन जाता। शैलेंद्र ने अपने गीतों में इसका पूरा ख्याल रखा ;
होठों पे सचाई रहती है
जहां दिल में सफाई रहती है।
हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है।।
एक सर्कस के जोकर के प्रति भले ही राजकपूर ने भले ही करुणा पैदा कर दी हो, ताश में भले ही एक जोकर का बोलबाला हो, असली जीवन में जोकर अभी भी हंसी और अपमान का ही पात्र है।
क्या आपको भी नहीं लगता कि आज का विपक्ष, महज एक bunch of Jokers यानी जोकरों का समूह है।
जंगली जानवरों पर तो आदमी सदियों से, शिकार के बहाने, अत्याचार करता चला आया है, क्या सर्कस में भी उन्हें पहले पिंजरे में बंद कर, और फिर हंटर से डरा डराकर तमाशे और मनोरंजन का पात्र नहीं बनाया जा रहा। हमसे अधिक जागरूक इस बारे में पशु पक्षी संरक्षण कानून है। वैसे भी राजनीतिक सर्कस और कॉमेडी सर्कस के रहते, सर्कस के दिन तो कब के लद गए। टीवी पर ही इतने सनसनीखेज और रोमांचक प्रोग्राम देखने को मिल जाते हैं कि दर्शक तौबा कर लेता है। आजकल बच्चों को वैसे भी सर्कस में नहीं मोबाइल पर ब्लू व्हेल जैसे खतरों से खेलने में अधिक आनंद जो आने लग गया है।।
♥ ♥ ♥ ♥ ♥
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈