श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्टेटस अपने अपने।)

?अभी अभी # 355 ⇒ स्टेटस अपने अपने? श्री प्रदीप शर्मा  ?

एक समय था, जब किसी से मिलते थे, तो पहले आपस में दुआ सलाम होती थी, राम राम होती थी, और फिर आमने सामने बात होती थी। जो दूर गांव बसे होते थे, उनसे चिट्ठी पत्री के माध्यम से ही हालचाल जाने जा सकते थे। तब कहां इतने अमीर गरीब थे, समय ही समय था, रिश्तों में हम कितने अमीर थे।

समय बदलता चला गया, हमारे लाखों के सावन में दो टकियाॅं की नौकरी ने आग लगा दी। नौकरी ने ओहदे दिए, दर्जा दिया, इंसान बड़ा छोटा, अमीर गरीब होने लगा। उसका भी अपना एक स्टेटस, दबदबा, कायम होने लगा।।

पहले रेडियो आया फिर टेलीफोन। जिस घर में रेडियो और टेलीफोन होता, वह बहुत बड़ा आदमी समझा जाता। लेकिन फ्रिज टीवी के आते ही इंसान फिर खास से आम हो गया। घर घर लूना, कार और स्कूटर और सबके हाथों में मोबाइल। पहले सम्पूर्ण क्रांति और तत्पश्चात् संचार क्रांति। और आदमी को स्मार्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगा।

2G स्कैम और कोलगेट कांड के बाबजूद, देश आखिर 3G, 4G और 5G तक पहुंच ही गया। कैशलेस, ऑनलाइन और डिजिटल होते होते वह आखिर व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम से जुड़ ही गया।

शिक्षा का स्तर कुछ भी हो, व्हाट्सप यूनिवर्सिटी ने कई की पीठ को ज्ञानपीठ बना दिया, और उधर फेसबुक तो मानो अपनी खुद की प्रिंटिंग प्रेस ही हो गई। शादी की विवाह पत्रिका खजूरी बाजार में नहीं, व्हाट्सएप और पीडीएफ पर ही छपने लगी।।

दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, लेकिन मेरे जैसा कुंए का मेंढक पीसी, लैपटॉप और डेस्कटॉप से अनजान ही रहा। स्मार्ट फोन आज भी मेरे हाथ में, मानो बंदर के हाथ में उस्तरा ही है। रोजी रोटी की चिंता से दूर मेरे जैसा पेंशनर सिर्फ व्हाट्सएप और फेसबुक पर ही अपना जीवन गुजार रहा है। स्मार्ट फोन की सांकेतिक भाषा मेरे पल्ले नहीं पड़ती। बच्चे मेरे मार्गदर्शक और गाइड हैं, फिर भी स्मार्ट फोन के बाकी एप्स यानी बंदर मेरे किसी काम के नहीं। करत करत अभ्यास के इतना ही पढ़ पाया कि ape बंदर को नहीं एप्लीकेशन को कहते हैं।

व्हाट्सएप का ही एक अंग है स्टेटस, जिससे मैं अभी तक अनभिज्ञ था। अभी तक नेकी कर, व्हाट्सएप पर डाल, लेकिन आजकल लोग पार्टी करते हैं और स्टेटस पर डाल देते हैं। जब मैंने दूध वाले, ऑटो वाले, मंदिर वाले पंडित जी और काम वाली बाई को भी स्टेटस पर देखा, तो मुझमें हीनता की भावना जाग्रत हो गई। बगल में छोरा जैसा व्हाट्सएप के बगल में स्टेटस और मुझे पता ही नहीं। हाय मैं मर जाऊं।।

इस उम्र में हीनता से ग्रस्त होना स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं। मैंने आज से ही स्टेटस की कोचिंग लेना शुरु कर दी है। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मेरा स्टेटस अभी तक इतना गिरा हुआ था, और मुझे पता ही नहीं था। होगा ignorance is bliss, मैं इस कलंक को अपने माथे से मिटाकर ही रहूंगा। आखिर मेरा भी कुछ स्टेटस है।

अक्सर मैं महिला/पुरुषों को स्टेटस पर टहलते देखा करता हूं, अब मुझे भी अदरक का स्वाद लग चुका है। सुबह सुबह गर्मागर्म चाय के साथ अब स्टेटस का भी जायका लिया जाएगा। हो सकता है, आपसे भी शीघ्र ही स्टेटस पर मुलाकात हो। दिल थामकर बैठिए, अब हमारी बारी है। शांतता, कोचिंग जारी है।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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