श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आइए डोरे डालें…“।)
अभी अभी # 358 ⇒ आइए डोरे डालें… श्री प्रदीप शर्मा
क्या आपने कभी किसी पर डोरे डाले हैं, अथवा आप पर किसी ने डोरे डाले हैं ? आखिर क्या होता है यह डोरा! डोरा सूत के धागे अथवा तागे को कहते हैं। धागे में सुई से मोतियों अथवा फूलों को पिरोकर माला बनाई जाती है। याद है, फिल्म कच्चे धागे ;
कच्चे धागे के साथ जिसे बांध लिया जाये।
वो बंदी क्या छूटे वहीं पे जिये वहीं मर जाये।।
कहीं वह भाई बहन के बीच की प्रेम की डोर है तो कहीं उसी धागे में मंगलसूत्र के रूप में किसी पतिव्रता का सुहाग सुरक्षित है ;
जीवन डोर तुम्हीं संग बाँधी क्या तोड़ेंगे इस बन्धन को जग के तूफ़ाँ आँधी …
किसी को एक तरह से धागे में उलझाना अथवा बांधना ही डोरे डालना कहलाता है। हमने बचपन में , स्वेटर बुनते वक्त, फंदे डालना सीखा था, लेकिन खुद ही फंदे में उलझकर रह गए। धागा कमजोर होता है, जबकि डोर मजबूत। एक डोर प्रेम की भी होती है, जिसके आकर्षण में इंसान तो क्या भगवान भी खिंचे चले आते हैं।।
डोरे डालना भी एक कला है, जिस पार्टी अथवा व्यक्ति ने आप पर डोरे डाले होंगे, आपका वोट उधर ही तो होगा। कितनी बार विवाहित महिलाओं की आम शिकायत रहती है, कि फलाना औरत हमारे पति पर डोरे डालती है।
वह डोरे कहां से लाती है, और कब चोरी छुपे इनके पति पर डाल देती है कुछ पता ही नहीं चलता।
क्या ये डोरे अदृश्य होते हैं, और क्या इनको किसी जादू अथवा टोने टोटके से हटाया अथवा डिफ्यूज नहीं किया जा सकता। ऐसा कहा जाता है कि जब कोई आप पर डोरे डालता है, तब आपकी मति मारी जाती है। यह डोरा क्या कोई नजर है, नजर लागी राजा तोरे बंगले पर। ऐसे कई बंगलों पर इन डोरे डालने वालियों ने कब्जा कर रखा है।।
एक डोर होती है, जो पतंग को आसमान में उड़ाती है।
पतंग यूं ही डोर के सहारे आसमान में नहीं उड़ती, पतंग में पहले सूराख कर कन्नी डाली जाती है, जिसे जोते बांधना भी कहते हैं।
एक बार आसमान में उड़ने के बाद आप जितनी डोर खींचेंगे, पतंग उतनी ही आसमान में ऊंची उड़ती जाएगी।
ऊंचे उड़ने वालों को जमाने की बहुत जल्द नज़र लगती है। कोई दूसरी पतंग आसमान में आई, तो पेंच लड़ाने शुरू। खेल तो पूरा डोर का होता है, लेकिन किसी ना किसी की पतंग तो कट ही जाती है। होते हैं, कुछ लालची लुटेरे, जो कटी पतंग पर भी झपट पड़ते हैं।।
केवल चिकनी चुपड़ी बातों से ही नहीं, अदाओं और लटके झटकों से भी सामने वाले पर डोरे डाले जाते हैं। फिल्म नमूना(1949) का शमशाद बेगम द्वारा गाए इस खूबसूरत गीत को सुनकर आप अंदाज नहीं लगा सकते, रानी जी किसी पर डोरे डाल रही हैं, अथवा डाका ;
टमटम से झांको न रानी जी।
गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी।।
तिरछी नज़र जो पड़ जाएगी।
बिजली सी दिल पे गिर जाएगी।।
अगर डोरे डालने की खुली प्रतियोगिता हो, तो उसमें इस तरह के गीत (फिल्म समाधि 1950) मोटिवेशन का काम कर सकते हैं ;
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