श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गर्म हवा…“।)
अभी अभी # 372 ⇒ गर्म हवा… श्री प्रदीप शर्मा
होता है, ऐसा भी होता है। गर्मी के मौसम में लोग गर्मागर्म हलवे के साथ, गर्म हवा की भी बातें करने लगते हैं। कितनी भी गर्मी हो, चाय के शौकीन गर्म चाय को फूंक मार मारकर शौक से पीते हैं। गर्मी, गर्मी को मारती है।
कहते हैं, सूरज कहीं नहीं जाता, पृथ्वी ही घूमती रहती है। कहीं नहीं जाने वाले सूरज को हमने सुबह खिड़की से पूरब से उगते देखा है, और उसी सूरज को शाम को दूसरी खिड़की से पश्चिम में अस्त होते देखा है।।
जिस सूरज से हम ठंड में सुबह सुबह ठंड में आंख मिलाते थे, धूप सेंकते थे, वही सूरज अब हमें फूटी आंखों नहीं सुहा रहा। ठंड और बारिश के मौसम में इसी सूरज का हमने स्वागत किया है, लेकिन इस मई जून में इसके तेवर बिल्कुल बदल गए हैं।
यही हाल घर के पंखों का है। जब भी बाहर से घर आते थे, पंखा खोलते ही ठंडी हवा कितनी सुकून देती थी। वही आज्ञाकारी पंखा आजकल गर्म हवा फेंक रहा है। उसने बेचारे ने कौन से आपके घर पर पत्थर फेंक दिए, जो हवा आसपास थी, वही तो आप तक पहुंचाई।।
जिन्हें पंखों पर भरोसा नहीं, उन्होंने घर में कूलर और एसी लगवा लिए हैं, और साथ ही इन्वर्टर भी। वे जानते हैं, गर्मी में बिजली कभी भी जा सकती है। कूलर एसी की हवा में बैठकर आप घंटों गर्मी और राजनीतिक सरगर्मी पर बातें कर सकते हो।
ठंडी ठंडी हवा पर कितने गीत हैं, लेकिन गर्म हवा में तो कविता को भी पसीना आ जाता है। इस गर्मी के मौसम में गर्म हवा की तारीफ कौन करता है भाई। यही तो वह मौसम है, जिसमें अच्छे अच्छे लोगों की लू उतर जाती है, जब इन्हे लू लगती है।।
कितनी भी गर्मी हो, मालवा की रातें तो ठंडी ही होती थीं। पंछी भले ही शाम को घर आते हों, पंखों, कूलर और एसी में दिन भर कैद आम आदमी शाम को ही ठंडी हवा खाने घर से निकलता था। लेकिन यह क्या, सड़कें तप रही हैं, पेड़ पौधे बुत की तरह खड़े हुए हैं। ना हिलना डुलना, ना हवा में इतराना, लहराना।
शबे मालवा ऐसी तो नहीं थी कभी।
गर्मी तो गरीब को भी लगती है और अमीर को भी। सब अपने अपने तरीके से इस गर्मी का मुकाबला करते हैं। सभी को जिंदा रहना है, बारिश की बूंदों के इंतजार में।
सूखे से मौत की खबर अब अखबार की हेडलाइन नहीं बनती। जलसंकट है, लेकिन अन्य संकटों में दब सा गया है। गर्म हवा पर राजनीति के रोड शो हावी हैं। लगता है, सभी को चार जून का इंतजार है।।
इसको ही जीना है तो
यूं ही जी लेंगे।
एसी, कूलर में बैठे बैठे
कोल्ड ड्रिंक्स और ठंडा पानी पी लेंगे।
पारा भले ही 47 डिग्री पार चला जाए, खूब गर्म हवा चले। बस इस बार चार सौ पार हो, तो कलेजे को ठंडक मिले..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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