श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बड़े होने का सबब।)

?अभी अभी # 387 ⇒ बड़े होने का सबब? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कोई जन्म से बड़ा अथवा महान नहीं होता। सब बड़े होते हैं, हाथी भी और चींटी भी। चींटी कितनी भी बड़ी हो जाए, लेकिन हाथी नहीं बन सकती। केवल बड़ा होने से भी कुछ नहीं होता, आदमी हाथी से छोटा होता है, फिर भी शान से हाथी की सवारी करता है, उस पर अंकुश लगाता है। होगा शेर जंगल का राजा, सर्कस के शेर से तो कागज़ का शेर भला।

बढ़ना और विकसित होना प्रकृति का नियम है। कल अगर आपका जन्मदिन था तो आज आप सिर्फ एक दिन और बड़े हो पाए, एक वर्ष और बढ़ने के लिए आपको अभी 364 और दिनों का इंतजार करना पड़ेगा। समय से बड़ा कोई नहीं होता। अच्छा समय चुटकियों में गुजर जाता है, दुःख के दिन पहाड़ से प्रतीत होते हैं।।

प्रकृति के कुछ नियम हैं। यहां अगर सभी कुछ नियत है तो कहीं कहीं नियति भी है। सृष्टि में, अलग अलग प्रजाति के जीव और वनस्पति हैं, कहीं बीज में पूरा वृक्ष समाया हुआ है तो कहीं सागर के सीपी में मोती। आम खाने के लिए बबूल का पेड़ नहीं लगाया जाता, क्योंकि बबूल पर आम नहीं पैदा होते। जानवरों में भी घोड़े, गधे और खच्चर पैदा होते हैं केवल एक इंसान ही ऐसा प्राणी है जिसका भविष्यफल जाना जा सकता है। मनुष्य में विकास की सभी संभावनाएं निहित हैं। उसका जन्म नियत है, नियति सबकी अलग अलग है। भाग्य और प्रारब्ध का खेला केवल इंसान ने ही खेला।

मेहनत का फल इंसान को ही मिलता है, बेचारे जानवर को तो सिर्फ घास ही नसीब होती है। किसी पेड़ की, अथवा किसी घोड़े, ऊंट, और बंदर की जन्म कुंडली नहीं बनती, क्योंकि इनमें और कुछ बनने की संभावनाएं हैं ही नहीं। मनुष्य में नर से नारायण और नारी से नारायणी का खयाल बुरा नहीं। और जहां खयाल ही बुरा हो, वहां तो फिर इस इंसान का भगवान ही मालिक है। अच्छे लोगों को अन्य सब लोग बुरे नजर आ रहे हैं। वे सबको अच्छा बनाने में लगे हुए हैं। लगता है, पूरे देश को बदल डालेंगे।

अगर ऐसा नहीं होता तो शायद किसी नारी कंठ से यह पुकार नहीं उठती ;

तुमको तो करोड़ों साल हुए

बताओ गगन गंभीर !

इस प्यारी प्यारी दुनिया में

क्यों अलग अलग तकदीर ?

आज का युग सीख देने का नहीं, सीखने का है। छोटे छोटे बच्चे अभी से एक बड़ा इंसान बनने का सपना देखने लगते हैं। उनके माता पिता भी, जो वे खुद नहीं बन पाए, अथवा अपने जीवन में नहीं कर पाए, अपने बच्चों में उसकी संभावनाएं तलाशते हैं। आज अधिक अवसर है, अधिक संभावनाएं हैं। जल्द ही बच्चों के पाठ्यक्रम से बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर जैसे नीति वाक्य नदारद हो जाएंगे। हमें पंछी और परमार्थ से क्या लेना देना। अर्जुन की तरह केवल मछली की आंख पर ही हमारा निशाना होता है। क्या आज आपको संतोषी सदा सुखी और रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी, जैसे आउट ऑफ डेट लेक्चर सुन हंसी नहीं आती ? लगता है, आप जीवन में कुछ बनना ही नहीं चाहते।।

जब एक छोटा आदमी, बड़ा आदमी बन जाता है, तो लोग उसे और बड़ा बनाने में लग जाते हैं। उसे और बड़ा बनाने के प्रयास में उन्हें कितना भी छोटा होना पड़े, उन्हें उसमें भी अपना बड़प्पन नजर आता है। बिग भी, एक बड़े आदमी के बेटे होते हुए भी, संघर्ष और पुरुषार्थ से बड़े हुए और आज इतने बड़े हो गए, कि अब छोटा होना उनके बस में ही नहीं। जब इंसान के दाने दाने में केसर का दम नजर आता है, तो उसे लोगों की नजर लग जाती है। वह भी मन में सोचता है, बड़ा होना भी अभिशाप है। लेकिन गरीब होने से यह अभिशाप अच्छा है।

अगर बड़ा बनना है, तो छोटे दिखते रहो। अच्छा पहनो, अच्छा ओढ़ो। नम्रता और विनम्रता से अच्छा कोई परिधान नहीं।

आजकल पत्थर उछालने पर प्रतिबंध है इसलिए दुष्यंत कुमार क्षमा करें, आसमान में सुराख करने के और भी तरीके होंगे। लोकतंत्र में सबको बराबरी का अवसर मिलता है। हाथ कंगन को आरसी क्या, एक चाय वाले को ही ले लो। नर देखिए, नारायण नहीं बना, नरेन्द्र बन गया। लोग नारायण को भूल गए। इसे कहते हैं कुछ बनना। आप भी बनना तो एक और नरेन्द्र ही बनना, भूल से भी चाय वाला मत बन बैठना, कोई नहीं पूछेगा।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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