श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आम सभा…“।)
अभी अभी # 393 ⇒ आम सभा… श्री प्रदीप शर्मा
भले ही आम चुनाव संपन्न हो गए हों, सरकारों का गठन भी शुरू हो गया हो, लेकिन मेरा आम चुनाव अभी भी जारी है। लोग आम चुनाव में पार्टी चुनते हैं, मैं चुनाव में अपनी पसंद का आम चुनता हूं।
जिस तरह राजनीति में आम आदमी की अपनी पसंदीदा पार्टी होती है, उसी तरह आम में भी मेरी पसंद होती है। आम के चुनाव के मौसम में मुझे किसी एक आम को नहीं चुनना, कभी लंगड़ा, कभी बदाम, कभी दशहरी तो कभी देसी आम को ही चूसना।
असली आम चुनाव तो वही है, जिसमें आदमी आम को चूसे, लेकिन यह कैसा आम चुनाव, जिसमें एक चुना हुआ आदमी, आम आदमी को काटे, छीले, चूसे और फेंके।।
आमों की सभा में से अक्सर मुझे अपनी पसंद का आम चुनना पड़ता है, आम मीठा भी हो, रसदार भी हो, और सस्ता भी हो। आम आदमी की पसंद अगर आम होती है, तो खास की कुछ खास। बदाम, तोतापरी, और दशहरी अगर आम है, तो बनारस का लंगड़ा, चौसा, गुजरात का केसर, और रत्नागिरी का अल्फांसो खास। जिनके घरों में अल्फांसो की पेटी आती है, वे आम नहीं, खास किस्म का आम खाते हैं।
एक आम देसी भी होता है, जो काटा नहीं, चूसा जाता है। आम चूसना, गन्ना चूसना जितना मुश्किल भी नहीं। लेकिन देसी आम धीरे धीरे बड़े शहरों से दूर होता चला जा रहा है। वैसे भी देसी आम चूसने से बेहतर है, अल्फांसो आम को काटकर खाया जाए और आम आदमी को चूसा जाए।।
हमें आम सभा में देसी आम कहीं नजर नहीं आता। इसलिए हमारा आम चुनाव भी एक तरह का गठबंधन ही होता है, कभी बनारस का लंगड़ा तो कभी गुजरात का केसर। बादाम ना सही, बदाम आम ही सही।
बरसों बाद हमारी देसी आम चूसने की मुराद पूरी हुई, जब अचानक हमारी बहन के सौजन्य से हमारे घर में देसी आम का प्रवेश हुआ। किसी परिचित के बगीचे के देसी आम थे। बस फिर क्या था, तबीयत से धोया, और टूट पड़े सब मिलकर। आम को पहले नर्म यानी पिलपिला करना, फिर उसका ढक्कन खोलकर मुंह से लगाना।
चूसते जाओ, चूसते जाओ, जैसे भ्रष्ट नेता, अफसर और व्यापारी आपको चूसता है, तब तक, जब तक गुठली बाहर ना आ जाए, लेकिन अपना दामन बचाकर, क्योंकि आम आदमी का आक्रोश कभी भी फूट सकता है। हम भी मनोयोग से मिल जुलकर आम चूसते रहे, जब तक आख़री आम ना चुक गया। अहा, क्या आम सभा थी और हम सबके चेहरों पर वही भाव था, जो आम चुनाव के बाद, बहुमत से जीतने के बाद किसी नेता का होता है। देसी आम चुनाव सम्पन्न, आम सभा समाप्त।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈