श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “माँ…“।)
अभी अभी # 406 ⇒ माँ… श्री प्रदीप शर्मा
माँ का कोई चित्र नहीं होता
चरित्र होता है !
पूत कपूत हो सकता है
माता कुमाता नहीं होती ।
माँ की तस्वीर
दीवार पर नहीं
मन की आँखों में
बसी रहती है ।
माँ वेदना है, सृजन है
त्याग है, बलिदान है ।
माँ जब बच्चे को
मारती है तो बच्चा
माँ को ही पुकारता है
बचाने के लिए !
और माँ उसे पुचकार कर
बाँहों में भर लेती है ।।
अपनी माँ में सबकी माँ
को तलाशना ही
माँ की सच्ची सेवा है ।।
क्योंकि यह मेरी नहीं
सबकी माँ है ।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈