श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लिखने का सुख…“।)
अभी अभी # 412 ⇒ लिखने का सुख… श्री प्रदीप शर्मा
लिखने में भी वही सुख है, जो सुख एक तैराक को तैरने में आता है, किसी किसी को गाड़ी ड्राइव करने में आता है, एक रसिक को संगीत में, और एक शराबी को शराब पीने में आता है। लिखना किसी के लिए एक आदत भी हो सकता है, एक नशा भी, और एक जुनून भी।
आज मुझे जितनी लिखने की सुविधा है, उतनी पहले कभी नहीं थी। लेकिन लिखने वाले तो तब भी लिखते थे, जब कागद कलम भी नहीं था। पत्थरों को खोद खोद कर लोगों ने शब्द बनाए हैं, पेड़ पौधों के पत्तों पर सरकंडे की कलम का उपयोग किया है। विचारों को शब्दों का जामा पहनाना ही लेखन है। अव्यक्त को व्यक्त करना, विचारों को लिपिबद्ध करना, अप्रकट को प्रकट करना ही सृजन है, साहित्य है, कविता है, वेद पुराण है। ।
संसार का सबसे बड़ा सुख सीखने में है। हमने बोलना, लिखना सीखा, हाथ में कलम पकड़ना सीखा। पहले मिट्टी की पेम, फिर पेंसिल। पहले निब वाला होल्डर और दो पैसे की कैमल की स्याही की टिकिया दवात में घोली और स्याही तैयार। एक ब्लोटिंग पेपर यानी स्याहीचट भी फैली स्याही को सोखने के लिए तैयार। उसके बाद ही हमारे हाथों में हमने पेन पकड़ा था। नौसिखिए के हाथ में न तो पेन देना चाहिए और ना ही तलवार।
लिखने के लिए एक अदद पैन और कागज ही पर्याप्त नहीं होता, दिमाग में भी तो कुछ होना चाहिए। सभी प्रेमचंद और शरदचंद्र तो नहीं हो सकते। रायचंद और जयचंद तो बहुत मिल जाएंगे। संसार में पढ़े लिखे लोग तो बहुत हैं, लेकिन पढ़ने और लिखने वाले बहुत कम। ।
दो शब्द बोलने का कहकर आधा घंटा बोलना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है सिर्फ दो शब्द लिखना। जिनको लिखने का अभ्यास है, वे ही कुछ लिख सकते हैं। जिनसे लिखे बिना रहा नहीं जाता, वे और कुछ नहीं तो डायरी ही लिखा करते हैं। जो बात हम किसी से कहना नहीं चाहते, वह डायरी में तो लिख ही सकते हैं।
आज एक एंड्रॉयड फोन अथवा कंप्यूटर पर लेखन कितना आसान हो गया है। पहले लेखक लिखता था, फिर उसे टाइप करवाकर छपने को भेजता था। आज बिना कागज पेन के केवल उंगलियों की सहायता से लिखिए और उसे दुनिया में जहां चाहे, वहां भेज दीजिए।
बस, आपके थिंक टैंक में क्या है, यह आप ही जानते हैं। ।
सृजन का संसार सुख सुविधा नहीं देखता। आप पौधारोपण से फूलों की घाटी नहीं बना सकते। तुलसी, मीरा, कबीर और सूर को तब कहां लिखने की इतनी सुख सुविधाएं उपलब्ध थी, लेकिन वे जो रच गए, वह जन मानस में रच बस गया। उन्होंने सृजन का सुख लूटा भी और दोनों हाथों से लुटाया भी।
आज लेखन पेशेवर भी है और स्वांतः सुखाय भी।
तकनीक तो इतनी विकसित हो गई है कि आप बोलकर भी लिख सकते हो, लेकिन अगर कल्पनाशीलता, मौलिक चिंतन और सर्व जन हिताय की मन में अवधारणा ही नहीं हो, तो सूर कबीर तो छोड़िए, हमारा सृजन प्रसाद, पंत, निराला, अज्ञेय और महादेवी की धूल के बराबर भी नहीं। लेकिन सृजन सृष्टि का नियम है, वह सतत चलता रहेगा। सृजन में केवल सुख ही नहीं पूरे संसार की वेदना, विषाद और दुख दर्द भी शामिल है। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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