श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “भूरि भूरि प्रशंसा (Panegyrize)…“।)
अभी अभी # 424 ⇒ भूरि भूरि प्रशंसा (Panegyrize)… श्री प्रदीप शर्मा
जब हम किसी की तारीफ करते हैं, तो खुलकर करते हैं, और जब बुराई करते हैं तो जमकर। याने जो भी काम करते हैं, तबीयत से करते हैं। इन दोनों के मिले जुले स्वरूप को ही निंदा स्तुति भी कहते हैं। राजनीति में कड़ी निंदा की जाती है और ईश्वर की स्तुति आंख बंद करके की जाती है। वह स्तुति, जिसे चापलूसी कहते हैं, वह तो जी खोलकर की जाती है।
तारीफ शब्द थोड़ा उर्दू और थोड़ा फिल्मी है, जब कि प्रशंसा शब्द शुद्ध और सात्विक रूप से हिंदी शब्द है। इतना सात्विक कि इस प्रशंसा को भूरि भूरि प्रशंसा भी कहा जाता है। यानी किसी की जब बुराई करने का मन हो, तो उसे खरी खोटी सुनाना, और प्रशंसा करने का मन किया तो भूरि भूरि प्रशंसा। ।
निंदा स्तुति अथवा बुराई और भूरि भूरि प्रशंसा एक ही मुंह से की जाती है। लेकिन प्रशंसा में चाशनी घोलने के लिए यह जरूर कहा जाता है, आपकी प्रशंसा किस मुंह से करूं ! अरे भाई, उसी मुंह से करो, जिस मुंह से कल बुराई कर रहे थे। कल जो कलमुंहा था, आज उसका चेहरा चांद सा कैसे हो गया।
चलिए, हमें इससे क्या, हमारा मन तो आज भूरि भूरि प्रशंसा करने का हो रहा है, इसलिए आज हम गुस्से से लाल पीले नहीं होने वाले। प्रशंसा लाल नहीं होती, नीली, पीली, हरी नहीं होती यह भूरि ही क्यों होती है।
स्तुति और प्रशस्ति के करीब, भूरि’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बहुत, प्रचुर मात्रा में और बार-बार। जैसे भूरि दान =प्रचुर मात्रा में दिया गया दान। भूरि-भूरि प्रशंसा का अर्थ है बहुत-बहुत प्रशंसा, बारम्बार प्रशंसा। ।
अंग्रजी भाषा इतनी संपन्न नहीं। आप किसी की अंग्रेजी में brown brown praise नहीं कर सकते, उसके लिए उनके पास एकमात्र शब्द पेनिगराइज़ (panegyrize) है। यह शब्द हमें अपोलोज़ाइज (apologize) का करीबी लगता है, लेकिन इसका और panegyrize का छत्तीस का आंकड़ा है, जहां भूरि भूरि प्रशंसा नहीं होती, उल्टे माफी मांगी जाती है।
ईश्वर की प्रशंसा नहीं की जाती, गुणगान किया जाता है। हमें तो भूरि भूरि प्रशंसा में चापलूसी अथवा चाटुकारिता की कतई बू नहीं आती। सज्जनों, मनीषियों, अथवा विद्वत्जनों की भूरि भूरि प्रशंसा करने में कोई दोष नहीं, अतिशयोक्ति नहीं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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