श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “भाई बहन ।)

?अभी अभी # 448 ⇒ भाई बहन? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भाई बहन का रिश्ता पति पत्नी के रिश्ते से अधिक पुराना और पवित्र होता है। एक का साथ अगर बचपन से होता है तो दूसरा साथ सात जनमों तक का होता है। आखिर रक्षाबंधन और गठबंधन में कुछ तो अंतर होना ही चाहिए। भाई बहन का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जो समय की धूल और परिस्थिति के साथ कुछ धुंधला जरूर हो सकता है, लेकिन कभी आंख से ओझल नहीं हो सकता।

पति पत्नी का साथ अगर वर्तमान है तो भाई बहनों का साथ एक सुखद अतीत। कहीं भाई बड़ा तो कहीं बहन बड़ी। अगर बहन बड़ी हुई तो छोटे भाई का खयाल एक मां की तरह रखेगी और अगर भाई बड़ा हुआ तो छोटी बहन पर अधिकार जताएगा, बार बार टोका टोकी करेगा, उसे प्यार भी करेगा लेकिन गलती करने पर पिताजी की तरह डांटेगा भी।।

बड़ी बहन तो जहां भी जाती थी, अपने छोटे भाई को साथ ले जाती थी, उसके साथ खेलती भी थी और सहेलियों से भी गर्व से मिलवाती थी, मेरा छोटा भैया है, और छोटा भाई कितना शर्माता था, उन सहेलियों के बीच।

लेकिन अगर भाई बड़ा हुआ तो छोटी बहन को छोड़ यार दोस्तों के साथ बाहर निकल जाता यह कहकर, तुम लड़की हो, क्या करोगी हम लड़कों के बीच। घर में ही रहो अथवा अपनी सहेलियों के बीच खेलो। भाई कम, अभिवावक ज्यादा।।

जिन घरों में एक से अधिक बहन होती थी, वे आपस में बहन से अधिक मित्र और सहेली बन जाती थी। साथ साथ स्कूल जाना, सहेलियों के बीच उठना बैठना, खेलना कूदना।

और अगर गलती से घर में दो भाई हो गए तो, बड़ा छोटा, मेरा तेरा। मेरी पेन को क्यों हाथ लगाया, अभी छोटे हो, पेंसिल से लिखो, खबरदार मेरी चीजों को हाथ लगाया तो। जितना गुस्सा उतना ही दुलार भी। पिताजी भी निश्चिंत रहते थे, बड़ा भाई सब संभाल लेता था। छोटे भाई की गलतियां भी और नादानियां भी।।

हम दो हमारे दो, के बाद तो भाई बहन का रिश्ता और अधिक प्रगाढ़ और परिपक्व होता चला जा रहा है। लड़ाई झगड़ा और नोक झोंक ही तो सच्चे रिश्तों की पहचान है, चाहे भाई बहन हों अथवा पति पत्नी।

संयुक्त परिवार में भाई बहनों के बीच एक नया सदस्य आ जाता था, जो बहन की भाभी और भाई की पत्नी होती थी। एक और नया रिश्ता ननद भाभी का। भाई पर बहन का अधिकार कम होता जाता था, भाई पर पत्नी का अधिकार बढ़ता चला जाता था। ननद तो ससुराल में ही भली, कभी कभी मायके आओ, भाई से राखी बंधवाओ और चले जाओ।।

उम्र के आखरी पड़ाव में एक बार पत्नी मां का स्थान ले सकती है, लेकिन बहन का नहीं। जीवन के हर मोड़ पर अलग अलग रहते हुए भी, भाई बहन हमेशा साथ ही रहते चले आए हैं। माता पिता कहां जिंदगी भर साथ निभा पाते हैं।

मेरी मां पांच भाइयों के बीच इकलौती बहन थी। मां का प्यार अपने पांचों भाइयों के प्रति देख मुझे आश्चर्य होता था, एक बहन इतने भाइयों को एक जैसा प्यार कैसे दे लेती है। कभी मिलना जुलना नहीं, बस एक राखी का धागा लिफाफे में जाता था, बहन के प्रणाम और भाइयों और भाभियों की मंगल कामना के साथ।।

हम तो खैर चार भाई और चार बहन हैं, सबने अपनी अपनी पसंद के भाई बहन चुन लिए हैं। राखी पर प्रेम से मिलजुल लेते हैं, बस यही क्या कम है, आज की यूनिट फैमिली के जमाने में, जहां राखी के त्योहार पर भी अगर भाई अमरीका में है तो बहन कानपुर में..!!

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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