श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक दिन की दास्तान…“।)
अभी अभी # 459 ⇒ एक दिन की दास्तान… श्री प्रदीप शर्मा
हर दिन एक नया दिन होता है। अपने साथ एक नई दास्तान लेकर आता है। दुनिया भविष्य के गर्त में छुपी होती है, घटनाएँ अंजाम लेती रहती हैं। दिन परवान चढ़ता रहता है।
अभी सुबह नहीं हुई ! सूरज नहीं उगा। तारीख़ ने दस्तक देना शुरू कर दिया। कैलेंडर ने एक दिन आगे खसका दिया। आज किसी की शादी है, किसी की शादी की वर्षगाँठ है और किसी का जन्मदिन है। सबके लिए यह आज का दिन खुशियाँ लाया है। कितना अच्छा दिन है। ।
अभी आज का अखबार आपके हाथों में नहीं आया। फिर भी आप निश्चिंत हैं। सोशल मीडिया पर आज के शुभ संदेश प्रसारित होने शुरू हो गए हैं। सुविचार और मंगलकामनाएं दिन को शुभ ही बनाए रखेंगी।
आज किसी के घर शहनाई बजेगी। किसी के घर किसी बच्चे ने जन्म लिया होगा। किसी के मन की मुराद पूरी हुई होगी। किसी की नौकरी का शायद आज पहला दिन हो, कोई शायद आज अपना सेवाकाल समाप्त कर रहा हो। यह सब आज के दिन ही तो होना है। रोज यही तो होता है। यही तो इस एक दिन की दास्तान है। ।
दिन किसी के अच्छे लिए अच्छे होते हैं, तो किसी के लिए बुरे भी। बुरे दिन इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज़ किये जाते हैं।
9/11, 26/11 अभी गुज़रे ही हैं। दिन को सब बर्दाश्त करना पड़ता है। दिन कभी अपना चेहरा नहीं छुपाता। वह जानता है स्वर्णिम इतिहास भी वही दिन बनाता है।
आज के दिन की दास्तान अभी लिखी जाना बाकी है। हमारे चेहरे की खुशी, हमारी आशा और विश्वास आज के दिन को एक विश्वसनीय दिन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। आज के दिन की दास्तान यादगार हो। एक अच्छे दिन की शुभकामना।
© श्री प्रदीप शर्मा
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