श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हुस्न और इश्क।)

?अभी अभी # 472 ⇒ हुस्न और इश्क? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ऐ हुस्न ज़रा जाग, तुझे इश्क जगाए ! और अगर हुस्न नहीं जागे, तो इश्क क्या करे। बस, ठंडी आहें भरे। हुस्न जब सोता है, बड़ा मासूम होता है। जागता है, सीधा आईने के पास जाता है। आइना नहीं, हुस्न नहीं। आईने की कोई सूरत नहीं होती, हुस्न को अपनी ही सूरत पर गुमान होता है, गुरूर होता है। हुस्न को यकीन है, आइना झूठ नहीं बोलता।

अगर हुस्न जाग जाए, और इश्क सो जाए, तो इश्क को कौन जगाए। हुस्न एक आग है, जिसमें वह खुद नहीं जलता। सुबह का सूरज उसी हुस्न की एक आग है। वह एक ऐसा आफताब है, जिसे देख कुदरत अंगड़ाई लेती है। इश्क जाग उठता है। इश्क सुबह के सूरज की इबादत करता है। फूल खिलते हैं, कलियां मुस्कुराती हैं, भंवरे गुनगुनाते हैं। हुस्न का जलवा ही सूर्योदय है।।

जैसे जैसे सूरज आसमान पर चढ़ता है, उसका हुस्न परवान चढ़ता है। वह तपकर आग का गोला हो जाता है। हमने जलवा दिखाया तो जल जाओगे। आप उस जलवे से आंख नहीं मिला सकते। हुस्न की आग से नज़रें मिलाई नहीं जाती, नजर झुकाकर भी इश्क किया जाता है।

हुस्ने जाना इधर आ, आइना हूं मैं तेरा। इश्क हुस्न को परदे में रखना चाहता है, उसे पूजना चाहता है। उसके हुस्न को किसी की नजर ना लगे, उसे ताले में बंद करना चाहता है। घूंघट के पट खोल रे, तुझे पिया मिलेंगे। जो हुस्न आग है, आफताब है, पाक साफ है, क्या उससे नज़रें मिलाना इतना आसान है।।

बाल कृष्ण ने मिट्टी क्या खाई, माता यशोदा ने गुस्से में जो नंदलाला का मुंह खोला, तो होश खो बैठी। वहां कृष्ण की लीला थी या जलवा था। माया अपना काम कर गई। यशोदा जान तो गई, लेकिन किसी को बताने की स्थिति में भी नहीं रही।

अर्जुन ने भी देखा था सारथी नटवर श्रीकृष्ण के हुस्न का जलवा कुरुक्षेत्र में, जब वह शस्त्र छोड़, शरणागत हो गया था।

कृष्ण का विराट स्वरूप जब सामने आया तो होश उड़ गए।।

हुस्न से चांद भी शरमाया है।

सूरज अगर आग है तो चंद्रमा शीतलता का प्रतीक ! चंद्रमा की अपनी कोई रोशनी नहीं। सूरज की ही परछाई है वह। ये जमीं चांद से बेहतर नजर आती है हमें। चांद से बेहतर ही है यह जमीं, क्योंकि यहां सूरज की रोशनी है, जीवन है, प्राण है, प्रेम है, शांति है। जहां भी तेज है, ओज है, रोशनी है, प्रकाश है, सब सूरज का ही जलवा है। हुस्न के कई रूप हैं, कई रंग हैं। कोई सच्चा आशिक ही उसको पहचान पाता है।

सुंदरता में प्रेम है, भक्ति है, समर्पण है। सब में रब तो बाद में होगा, क्यों न सब रब में ही समा जाए। पहले किसी से दिल तो लगे, फिर शुरू हो दिल्लगी। हुस्न का जलवा हो, तो हम भी कर लें बंदगी ;

आशिक हूं तेरे दर का

ठुकरा मुझे ना देना।

आया हूं बन भिखारी

झोली तो भर ही देना।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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