श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “छत्तीस का आंकड़ा…“।)
अभी अभी # 481 ⇒ छत्तीस का आंकड़ा… श्री प्रदीप शर्मा
शुभ अशुभ की दुनिया में हमने आंकड़ों को भी नहीं छोड़ा। शादी की पत्रिका में जब गुण मिलाए जाते हैं तो बत्तीस शुभ माने जाते हैं और अगर यही गुण 36 हो गए तो समझिए पति पत्नी के बीच छत्तीस का आंकड़ा। भारतीय दंड संहिता में धोखाधड़ी और और बेईमानी की एक धारा है, ४२०। इसी से शब्द बन गया है चार सौ बीसी। महान राजकपूर ने इसके आगे भी श्री लगाकर इन्हें श्री 420 बना दिया। नौ और दो ग्यारह होते हैं, लेकिन यहां तो हमने लोगों को भी, रायता फैलाने के बाद, नौ दो ग्यारह होते देखा है।
परीक्षा में कभी 33 % पर छात्र को उत्तीर्ण घोषित किया जाता था। अगर किसी को छत्तीस प्रतिशत अंक आ गए, तो समझो बेड़ा पार। शादी के लिफाफे में कभी ग्यारह और 101 रुपए का रिवाज था। सिद्ध महात्माओं और जगतगुरू के आगे केवल 108 लगाने से काम नहीं चलता, श्री श्री 1008 लगाना ही पड़ता है। ।
मालवा के बारे में एक कहावत है, “मालव धरती गहन गंभीर, पग पग रोटी, डग डग नीर “।
प्रदेश का प्रमुख शहर इंदौर कभी मुंबई का बच्चा कहलाता था। यहां एक नहीं, छः छः टेक्सटाइल मिल्स थी, जो मजदूरों की रोजी रोटी का प्रमुख साधन था। शहर में तब नर्मदा नहीं थी, लेकिन एक नहीं चार चार तालाब थे, यशवंत सागर, पिपल्या पाला, सिरपुर और बिलावली। लेकिन केवल यशवंत सागर ही इतना सक्षम था, कि पूरे नगर की प्यास बुझा दे। सब तरफ हरियाली थी और कभी यहां नौलखा यानी एक ही इलाके में नौ लाख पेड़ थे।
मानसून इस शहर पर हमेशा मेहरबान रहा है। कभी 36 तो कभी 56 बस, इसी के बीच, यहां का औसत बारिश का आंकड़ा रहा है। कालांतर में कपड़ा मिले बंद जरूर हुई लेकिन शहर का विकास नहीं रुका। तीन चरणों में नर्मदा मैया के चरण इस अहिल्या की नगरी पर पड़े और उसके बाद इस शहर का मानो कायाकल्प हो गया। ।
आज यह महानगर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है। जिस शहर में कभी टेम्पो चला करते थे, अब वहां के लोग मेट्रो में सफर करेंगे। भाग तो सभी के जागे हैं लेकिन पानी की समस्या कम होने के बजाय बढ़ती ही चली जा रही है। अप्रैल माह से ही बस्तियों में और सुदूर बहुमंजिला आवासीय परिसरों में पानी के टैंकर दौड़ने लग जाते हैं।
कल जहां खेत और गांव थे आज वहां कॉलोनियां बस गई हैं। ना तू जमी के लिए है और ना आसमान के लिए तेरा वजूद है सिर्फ 2BHK और 3 BHK के लिए। इस बार बारिश का आंकड़ा 36 इंच भी पार नहीं कर पाया है। आसमान से बारिश होती है, पानी जमीन में नहीं जाता सड़कों पर ही जमा हो जाता है। हमारा काम भी अब 36 इंच बारिश से नहीं, 56 इंच से होने लगा है। नरेंद्र नहीं इंद्र सुनें और योग्य कार्यवाही करें। हम तो सिर्फ यह प्रार्थना ही कर सकते हैं ;
अल्लाह मेघ दे, पानी दे, छाया दे रे रामा मेघ दे श्यामा मेघ दे
अल्लाह मेघ दे, पानी दे, छाया दे रे रामा मेघ दे। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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