श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सुदामा चरित्र…“।)
अभी अभी # 483 ⇒ सुदामा चरित्र… श्री प्रदीप शर्मा
सुदामा भगवान कृष्ण के बचपन के सखा थे। वे श्री कृष्ण के अनन्य भक्त तो थे ही लेकिन कुछ कथा वाचकों और भजन गायकों ने उनके साथ गरीब ब्राह्मण का विशेषण भी लगा दिया। कृष्ण और सुदामा की कहानी सिर्फ एक अमीर और गरीब मित्र की दास्तान बनकर रह गई। आज भी हर सुदामा यही चाहता है उसे भी जीवन में कोई श्री कृष्ण जैसा सखा, मित्र अथवा दोस्त मिले।
सांसारिक मित्रता में दोस्ती तक तो ठीक है लेकिन किसी अमीर मित्र के प्रति सुदामा की तरह भक्ति भाव अथवा अनन्य भाव का होना बड़ा मुश्किल है। हमने तो मित्रता की एक ही परिभाषा बना रखी है सच्चा दोस्त वही जो मुसीबत में काम आए। ।
सुदामा चरित, कवि नरोत्तमदास द्वारा ब्रज भाषा में लिखा गया एक काव्य ग्रंथ है. इसमें निर्धन ब्राह्मण सुदामा की कहानी है, जो भगवान कृष्ण के बचपन के मित्र थे. सुदामा की कहानी श्रीमद् भागवत महापुराण में भी मिलती है।
आज की सांसारिक परिभाषा में सुदामा दीनता, निर्धनता, साधुता और सरलता का प्रतीक है। सुदामा के सखा श्रीकृष्ण की ऊंचाइयों तक तो खैर यह इंसान कभी पहुंच ही नहीं सकता, केवल उनके गुणगान कर, भक्ति भाव में आकंठ डूब, शरणागत हो सकता है।।
मेरे शहर में शिक्षक कल्याण संघ ने पहले एक गृह निर्माण संस्था बनाई और फिर शिक्षकों के लिए सुदामा नगर का निर्माण शुरू हो गया। सरकार भी इन शिक्षकों पर मेहरबान हुई और सस्ते दर पर इन्हें जमीन उपलब्ध करा दी गई और जल्द ही इस सुदामा नगर का नाम एशिया की सबसे बड़ी अवैध कॉलोनी के रूप में विख्यात हो गया।
वैसे तो हर भक्त पर द्वारकाधीश मेहरबान होते हैं, लेकिन जब उनके मित्र सुदामा की बारी आती है तब तो वे कुछ खास ही मेहरबान हो ही जाते हैं। आज की तारीख में सुदामा नगर एक सुव्यवस्थित, सुविधा संपन्न कॉलोनी है, जहां किसी तरह का अभाव नहीं। आपको लगेगा आप मानो कृष्ण की द्वारका में ही आ गए हैं। सुदामा नगर के बढ़ते प्रभाव के कारण पास की फूटी कोठी के भी भाग जाग गए, वह पुखराज कोठी हो गई।
और हमारे ठाकुर जी अपने परम मित्र सुदामा को तो महल में रखते हैं और खुद बालस्वरूप में मथुरा, वृंदावन गोकुल, नंदगांव और मथुरा में बाल लीलाएं करते हैं, गोपियों संग रास रचाते हैं, और बांसुरी बजाते हैं।
आज के कलयुग में भी अगर आपको कृष्ण और सुदामा की लीला देखना हो तो कभी सुदामा नगर चले जाएं, वहां आपको दिव्यता और भव्यता के ही दर्शन होंगे। उसी सुदामा नगर के आसपास एक द्वारकापुरी कॉलोनी भी है, जो सुदामानगर की तुलना में बहुत छोटी है। उस कृपानिधान की लीला ही कुछ ऐसी है। उसका बस चले तो अपने भक्त पर तीनों लोक वार दे। सुदामा नगर बनाना आसान है, सुदामा बनना नहीं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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