श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शक्ति और इच्छा शक्ति।)

?अभी अभी # 515 ⇒ शक्ति और इच्छा शक्ति ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

(Power & will power)

कभी कभी जब शक्ति जवाब दे देती है, तो इच्छा शक्ति काम आती है।

शक्ति का संबंध शारीरिक बल से है, जब कि इच्छा शक्ति का संबंध मनोबल से है। विनोबा भावे का वज़न चालीस किलो से भी कम था, लेकिन मनोबल तो क्विंटल से था। गांधी जी को हाड़ मांस का पुतला कहा जाता था, लेकिन जब इरादे चट्टान से हों, तो कोई पत्थर राह नहीं रोक सकता।

जरा हाथी का बल देखिए, लेकिन एक महावत का अंकुश उसे बताए रास्ते पर चलने को मजबूर कर देता है, जंगल का राजा शेर जब पालतू बन जाता है तो सर्कस का रिंग मास्टर उसे अपनी उंगलियों पर नचाता है। हमने तो अखाड़े के कई छप्पन इंच के सीने वाले पहलवानों को घरवाली के सामने बकरी बनते देखा है। जब किसी पहलवान के घुटने खराब हो जाते हैं, तो उसकी शक्ति आधी हो जाती है, और इच्छा शक्ति और अधिक कमजोर।।

इच्छा शब्द विल और डिज़ायर से मिलकर बना है। इच्छा और मूल प्रवृत्ति में अंतर होता है। मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों में मूल प्रवृत्ति तो होती है, लेकिन इच्छा का अभाव होता है। जानवर सिर्फ भोग करना जानता है, उपभोग करना नहीं।

जहां शक्ति तो है, लेकिन कोई इच्छा, इरादा, आकांक्षा ही नहीं, वहां इच्छा शक्ति का सवाल ही नहीं।

मनुष्य वस्तुओं का भोग करना जानता है और उपभोग भी, इसलिए भोग योनि का होते हुए भी अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है। वह इच्छा शक्ति से अपनी शक्ति को चैनलाइज कर एक दिशा दे सकता है। विज्ञान का क्षेत्र हो अथवा अध्यात्म का। बुद्धिबल और मनोबल जब मिल जाते हैं, तो स्वर्ग धरती पर उतर आता है। उसमें नर से नारायण बनने की पूरी संभावनाएं मौजूद हैं। नर सत्संग से क्या से क्या हो जाए।।

शक्ति और इच्छा शक्ति के अलावा हर प्राणी में एक तत्व और मौजूद होता है जिसे जिजीविषा कहते हैं।

जीने की चाह अथवा desire to survive तो चींटी और कीड़े मकोड़ों में भी होती है। जान बचाने की युक्ति, अपने अपने स्तर पर हर प्राणी जानता है।

लेकिन सिर्फ जिंदा रहना ही तो एक विवेकशील मनुष्य के लिए काफी नहीं। उसे अपनी शक्ति के साथ युक्ति का प्रयोग भी करना पड़ता है। आज के समय में बलवान वही है, जो अपनी शक्ति और इच्छा शक्ति का भरपूर दोहन करे। समय तो खैर बलवान है ही, लेकिन हमारा मनोबल भी कुछ कम नहीं। कितना सही आकलन है आज की पीढ़ी का, इन पंक्तियों में ;

अब वक़्त आ गया

मेरे हँसते हुए फूलों।

उठो छलाँग मार के

आकाश को छू लो।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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