श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दया के पात्र…“।)
अभी अभी # 535 ⇒ दया के पात्र श्री प्रदीप शर्मा
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छांड़िये, जब लग घट में प्राण।।
हे गोविंद हे गोपाल, हे दया निधान …
दया एक ईश्वरीय गुण है। ईश्वर को दयानिधान और करूणासागर भी कहा गया है। यह दया प्राणी मात्र में व्याप्त है। मातृत्व भाव इसका प्रतीक है। मनुष्य को तो छोड़िए, हर हिंसक जीव चाहे वह नर हो या मादा, अपने अंडे, बच्चे, चूज़े को ना केवल जन्म ही देते हैं, उसकी प्राकृतिक आपदा और अन्य शिकारी प्राणियों से, जी जान से सुरक्षा और बचाव करते हैं। हिंसक वृत्ति के होते हुए भी आप इन वन्य प्राणियों को, नन्हें श्रावकों को, अपने मुंह में दबाकर, सुरक्षित स्थान पर, यहां से वहां, ले जाते हुए देख सकते हैं। सौजन्य, डिस्कवरी चैनल।
मनुष्य मात्र में दया, करुणा और मोह, आसक्ति स्थायी भाव हैं। इसीलिए वह कभी मोहासक्त तो कभी दयालु हो जाता है। जब हमसे किसी का दुख देखा नहीं जाता, तो हममें दया और करुणा का भाव जागृत हो जाता है और हम भरसक उसकी सहायता करने की कोशिश करते हैं।।
दया के साथ दान शब्द भी उसी तरह जुड़ा हुआ है, जिस तरह दया के साथ धर्म। किसी की गरीबी अथवा अभाव देखकर सबसे पहले हममें
दया का भाव उत्पन्न होता है, दान की इच्छा तो बाद में जागृत होती है। जो दया का पात्र है, उसे ही दान दिया जाना चाहिए।
लोग तो दया के वशीभूत होकर भिखारियों को भी दान दे देते हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में भीख कहा जाता है।
भिक्षावृत्ति अपराध होते हुए भी संतों और महात्माओं को भिक्षा दी जाती है, जिसके बदले में वे शिष्यों को दीक्षा प्रदान करते हैं। हरि ओम शरण तो यहां तक कह गए हैं ;
भिखारी सारी दुनिया
दाता एक राम ….।।
दया का पात्र हमेशा तो हम खोजने से रहे, इसलिए चलो दानपात्र में ही कुछ योगदान कर देते हैं, जो पात्र होगा, उस तक वह पहुंच जाएगा। दया तो एक संचारी भाव है, आता है, चला जाता है। अगर आप भावुक व्यक्ति हैं तो कुछ मदद कर देंगे, अन्यथा केवल द्रवित होकर वहां से प्रस्थान कर जाएंगे। लेकिन दान की वृत्ति तो कुछ देने की ही होती है।
जिस तरह जल ऊपर से नीचे की ओर बहता है, फल पेड़ से जमीन पर गिरता है, ठीक उसी प्रकार दया और दान के भाव समर्थ से असमर्थ की ओर प्रवाहित होते हैं। जो असमर्थ है, वह क्या दया दिखाएगा और कुछ दान करेगा।।
दया और दान का पात्र कभी भरता नहीं। दुख दर्द और आर्थिक अभाव कुछ लोगों की नियति है, केवल एक निमित्त बनकर ही हम इसमें अपना योगदान कर सकते हैं।
ईश्वर हमें इतना सक्षम बनाए कि हम हर दीन दुखी की कुछ सहायता कर सकें। प्राणी मात्र के लिए सदा हमारे मन में दया और करुणा का भाव बना रहे ;
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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