श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गोदान और भूदान…“।)
अभी अभी # 584 ⇒ गोदान और भूदान श्री प्रदीप शर्मा
दान तो खैर दान होता है, फिर भले ही वह गोदान हो अथवा भूदान। दान का शाब्दिक अर्थ है – ‘देने की क्रिया’। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है।
यह भी सच है कि भूदान जैसा कोई यज्ञ अथवा आन्दोलन गोदान के लिए नहीं चला लेकिन एक समय था जब हमारे देश में गोधन ही सर्वश्रेष्ठ धन माना जाता था और दान अथवा दहेज में गायों की ही प्राथमिकता होती थी।
इस सृष्टि में एक ही नंद हुए हैं और एक ही गोपाल।।
कहते हैं, द्वापर काल में नंद बाबा के पास सबसे अधिक ८४ लाख गायें थीं। जहां घी दूध की नदियां बहेंगी, वहीं तो माखनचोर नंदलाल पैदा होंगे। कलयुग में तो हमें सब ओर चारा चोर और चंदा चोर ही नज़र आएंगे, चित चोर नहीं।
हमने बचपन में सिर्फ गाय पर निबंध लिखा है और मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गोदान भर पढ़ा है। साबरमती के संत की तरह ही एक और संत पैदा हुए हैं, आचार्य विनोबा भावे, जिन्होंने भूदान आंदोलन की नींव डाली। पहले भूमिहीन को भूमि तो मिल जाए, गऊ सेवा तो बाद में भी हो जाएगी। हमारा समाज सिर्फ आदर्श की बात करता है। गांधीजी का चरखा हो अथवा विनोबा भावे का भूदान आंदोलन, व्यावहारिक रूप से ना तो सफल हो पाया और ना ही तत्कालीन नेतृत्व में ऐसे आदर्श के प्रति कोई निष्ठा अथवा पॉलिटिकल विल ही देखी गई। ।
आज भूदान का स्थान भू माफिया ने ले लिया है। जर, जोरू और जमीन के विवाद से क्या हम कभी ऊपर उठ पाए। फिर भी इस वातावरण में अगर हम बुरा देखने जाएंगे, तो कबीर की भाषा में, अपने आप से बुरा हमें कोई नहीं मिलेगा क्योंकि अच्छाई कभी नहीं मरती। सड़कों से आवारा पशु की तरह घूमता गो धन फिर से गौशालाओं में सम्मानपूर्वक स्थान पा रहा है। लगता है, खोई गैया को फिर से उसका गोपाल मिल गया है।
लोग मंदिर, अस्पताल, गौशाला और ओल्ड एज होम्स के लिए मुक्त हस्त से दान कर रहे हैं, कितनी पारमार्थिक संस्थाएं और एनजीओ’ज़ देश के आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए एकजुट हैं, पहले राम मंदिर और अब प्रयाग राज का महाकुंभ इसका जीता जागता उदाहरण है।
नेक इरादे और शुभ संकल्प कभी मरते नहीं। समाज में बुराई अगर आटे में नमक जितनी हो, तो चलेगा, लेकिन अगर नमक में आटा मिला हो, तो फिर तो सबका रामजी भला करे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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