श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पुण्य का कारोबार…“।)
अभी अभी # 586 ⇒ पुण्य का कारोबार श्री प्रदीप शर्मा
राम नाम के साथ अगर पुण्य की भी लूट लगी हो तो क्या यह सोने में सुहागा नहीं। क्या आप दान और पुण्य को अलग कर सकते हैं। दान से ही तो पुण्य कमाया जाता है। कलयुग नाम अधारा तो यक़ीनन है ही लेकिन इसके साथ साथ दान पुण्य का कारोबार भी चलता रहना चाहिए।
१४४ वर्ष बाद एक ऐसा महा अवसर आया है, जहां कम से कम ४० करोड़ श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान कर महा पुण्य के भागी बनेंगे। बिना दान के पुण्य नहीं कमाया जाता। आप यूं भी कह सकते हैं, बिना दान के पुण्य का कारोबार नहीं चलता। अगर आप यजमान हो तो भी दान करेंगे और अगर आप सरकार हो, तब भी सभी संत और श्रद्धालुजन को सभी तरह की सुविधा प्रदान करेंगे। पुण्य में लाभ ही होता है, कभी नुकसान नहीं होता, इसीलिए दान दिया जाता है, और बदले में पुण्य स्वत: ही अर्जित हो जाता है।।
जब कोई धार्मिक महोत्सव होता है तो उसका प्रचार प्रसार भी होता है और बाजार की निगाहें भी उधर उठ ही जाती है। जहां मंदिर है, वहां आसपास दुकानें भी होंगी और बाजार भी। आखिर हर व्यक्ति कुछ कमा ही रहा है। धर्म की कमाई ही पुण्य की कमाई कहलाती है।
इस महाकुंभ में तो बस कमाई ही कमाई है। जो मूरख इस महाकुंभ में धर्मलाभ ले, अमृत स्नान का पुण्य नहीं लूटता, वह तो अभागा ही हुआ।
महाकुंभ इस कलयुग की एक महा इवेंट है। क्या साधु संत, गृहस्थ और कारोबारी, सभी इसका पुण्य लाभ लेना चाहते हैं, अपने तन, मन और धन के योगदान से इसका हिस्सा बनना चाहते हैं।
फूल खिलेगा तो महकेगा और जहां सेवा और दान पुण्य होगा, वहां उसका नाम भी होगा। फिर ऐसे अवसर पर अडानी हों अथवा इस्कॉन, क्या देसी और क्या विदेशी सभी अपनी मार्केटिंग प्रतिभा के साथ पुण्य के इस अखाड़े में कूद पड़े हैं।।
ऐसे में मीडिया और सोशल मीडिया भी क्यों न बहती गंगा में पुण्य की डुबकी मार ही ले। इतने भव्य और दिव्य आयोजन की मनोरम छवि छन छनकर उन करोड़ों श्रद्धालुओं को भी लाभान्वित कर रही है, जो किसी कारण इस महाकुंभ का हिस्सा नहीं बन सके।
जहां बाबा होंगे, वहां योग साधना भी होगी और चमत्कार भी होंगे। एक आयआयटीअन अभय सिंग साधु क्या बन गए, मीडिया में बुरी तरह वायरल हो गए। अगर पढ़े लिखे प्रभावित हो गए तो स्थापित बाबा उनसे नाराज हो गए। हमारे अखाड़े में तुम्हारा क्या काम है।।
डर है कहीं आयआयटी और आयआयएम भी भविष्य में इंजीनियर और प्रबंधन की जगह बाबा बनने की ट्रेनिंग नहीं देने लग जाए। जो भी हो, जितना बन सके, इस अवसर पर जितना पुण्य लूट सकें, लूटें। आखिर सरकार भी तो इस महाकुंभ से कम से कम दो लाख करोड़ कूटने जा रही है। इसे कहते हैं, सफल धार्मिक प्रबंधन के साथ साथ पुण्य लाभ भी।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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