श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “…तो मुश्किल होगी।)

?अभी अभी # 592 ⇒ …तो मुश्किल होगी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

हम आम लोगों की मुश्किलें कुछ अलग किस्म की होती हैं, मसलन कभी जेठ की भरी दोपहर में लाइट चली जाए अथवा कड़ाके की ठंड में गीज़र खराब हो जाए। लेकिन शायर कुछ अलग किस्म की मिट्टी के बने होते हैं और उनकी मुश्किलों की तो बस पूछिए ही मत।

कौन किससे प्यार करे, यह उसका जाती मामला होता है, दुनिया इसे चाहत का खेल कहती है। हमारे साहिर साहब तो वैसे भी बड़े दिल वाले हैं, उनको क्या फ़र्क पड़ता है क्योंकि उनका तो पहला प्यार ही शायरी है।।

वे कितनी आसानी और दरियादिली से कह जाते हैं ;

तुम अगर मुझको ना चाहो

तो कोई बात नहीं ..

यह कोई छोटी बात नहीं। यह बतलाता है कि वे भी सामने वाले की पसंद नापसंद की कद्र करते हैं, ठीक है ;

तुम मगर मुझको ना चाहो तो कोई बात नहीं

मेरी बात और है

मैंने तो मोहब्बत की है ..

लेकिन नहीं, यहां हमारे साहिर साहब एकदम पलटी मार देते हैं। वे एकदम कह उठते हैं ;

तुम किसी और को चाहोगी

तो मुश्किल होगी …

अब क्या मुश्किल होगी, कौन सी आफत आ पड़ेगी अथवा कौन सा पहाड़ टूट जाएगा।अरे भाई साफ साफ क्यों नहीं कहते, दिल टूट जाएगा, मैं बर्बाद हो जाऊंगा। लेकिन नहीं, यहां भी शराफत ओढ़, कह दिया, तो मुश्किल होगी।।

बात यहां खत्म नहीं होती, यहां से तो शुरू होती है। आप फरमाते हैं ;

अब अगर मेल नहीं है तो जुदाई भी नहीं

बात तोड़ी भी नहीं तुमने बनाई भी नहीं

ये सहारा भी बहुत है मेरे जीने के लिये

तुम अगर मेरी नहीं हो तो पराई भी नहीं

मेरे दिल को न सराहो तो कोई बात नहीं

गैर के दिल को सराहोगी, तो मुश्किल होगी ..

तुम हसीं हो, तुम्हें सब प्यार ही करते होंगे

मैं तो मरता हूँ तो क्या और भी मरते होंगे

सब की आँखों में इसी शौक़ का तूफ़ां होगा

सब के सीने में यही दर्द उभरते होंगे

मेरे ग़म में न कराहो तो कोई बात नहीं

और के ग़म में कराहोगी तो मुश्किल होगी ..

इतना ही नहीं, जरा आगे देखिए ;

फूल की तरह हँसो, सब की निगाहों में रहो

अपनी मासूम जवानी की पनाहों में रहो

मुझको वो दिन न दिखाना तुम्हें अपनी ही क़सम

मैं तरसता रहूँ तुम गैर की बाहों में रहो

तुम अगर मुझसे न निभाओ तो कोई बात नहीं

किसी दुश्मन से निभाओगी तो मुश्किल होगी ..

हर इंसान में एक पजेसिव इंस्टिंक्ट होती है। जो मेरा नहीं हो सका, वह किसी का भी ना हो। आम आदमी पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ सकता है, वह देवदास भी बन सकता है। लेकिन जो लोग संजीदा होते हैं, वे ही कवि अथवा शायर बन पाते हैं।

साहिर भले ही एक कामयाब शायर हों, लेकिन अमृता की तरह खुलकर उन्होंने कभी अपने प्यार अथवा दर्द का इज़हार नहीं किया। आप कह सकते हैं, यही तो फर्क है, एक पुरुष और नारी में। कहीं भावुकता और समर्पण है तो कहीं ग़मों से समझौता करने का गुर अथवा दिल पर पत्थर रख लेने की मजबूरी। शायद यही फर्क है साहिर – अमृता और सुरैया – देवानंद में।

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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