श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नागरिक शास्त्र…“।)
अभी अभी # 599 ⇒ नागरिक शास्त्र श्री प्रदीप शर्मा
बचपन में मैं एक मंद-बुद्धि छात्र था। घर में दादा जी के कल्याण विशेषांक पड़े रहते थे, सो शास्त्र शब्द से परिचित था। जब नागरिक शास्त्र का नाम सुना तो आश्चर्य हुआ कि नागरिकों के लिए लिखा गया शास्त्र बच्चों को क्यों पढ़ा रहे हैं? बाद में मास्टरजी ने मेरी अलग से क्लास लेकर नागरिक शास्त्र का मतलब समझाया।
हमने नागरिक शास्त्र भी पढ़ा और सामाजिक अध्ययन भी, क्योंकि कोर्स में था। तब समझने की उम्र नहीं थी। परीक्षा के लिए पढ़ते थे। पानीपत की पढ़ाई और प्लासी के युद्ध की तारीख तक याद करनी पड़ती थी। नागरिकों के अधिकार और कर्त्तव्य, मताधिकार और चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार की योग्यता में यह भी अनिवार्य था कि वह पागल और दिवालिया न हो। आज लगता है, दुनिया पागल है, या फिर में दीवाना।।
कॉलेज में जाकर फिर वही सब समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, कानून की पढ़ाई और एमबीए में मानव संसाधन के अंतर्गत आ गया। लोकतंत्र और संविधान की आत्मा की चिंता जब एकदम बढ़ जाती है, तो आम आदमी सोचने लग जाता है कि ऐसा क्या हो रहा है, जो उसने कहीं नहीं पढ़ा। कहीं सिद्धांत और व्यवहार में जमीन आसमान का अंतर तो नहीं।
कॉलेज में अर्थ-शास्त्र और राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले साईकल पर आते थे, और व्यापारियों और नेताओं के पुत्र स्कूटर, मोटर सायकिल और जीप में। छात्र-संघ के चुनाव में राजनैतिक पार्टियों के लोगों का भी आना जाना लगा रहता था। कुछ छात्र केवल राजनीति करने आते थे। परीक्षा में चाकू की नोक पर नकल करते थे, फिर भी पास नहीं हो पाते थे। अगर पास होते रहते, तो कॉलेज छोड़ना पड़ता। प्रोफ़ेसर भगवान से प्रार्थना करते थे, कि ऐसे छात्र पास हो जाएं, तो मिठाई बाँटें।।
जो ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाए वे नेता और वकील बन गए। अच्छे वाद-विवाद और परिसंवादों में भाग लेने वाले पत्रकार बन गए, जो अच्छी गालियाँ बक लेते थे, वे पुलिस में चले गए। बाकी जो बचे, वे बैंक, एलआईसी और शिक्षा विभाग में सेटल हो गए।
आज संविधान और लोकतंत्र पर एक अनजान खतरा मंडरा रहा है। बंद, हड़ताल, धरने और सत्याग्रह का आदी यह देश विरोध और असहमति को नहीं पचा पा रहा। हमारे दिवंगत समाजसेवी शेर जॉर्ज आज की परिस्थिति में रेल के पहिये छोड़, किसी साधारण फैक्ट्री में हड़ताल भी नहीं करवा सकते थे। आज इंकलाब जिंदाबाद और बोल मजूरा हल्ला बोल, बोलने वाला वामिया कहलाता है। लाल झंडे को सलाम करने वाला अर्बन नक्सल कहलाता है।।
सुप्रीम कोर्ट में और संसद में संविधान पर बहस होती है। न्यूज़ हेड-लाइन्स बनती है, लोकतंत्र खतरे में ! आम आदमी सोचता है कि आखिर उसने ऐसा क्या कर डाला कि संविधान और लोकतंत्र खतरे में पड़ गया। उसे तो अपनी रोजी रोटी और बाल-बच्चों से ही फुर्सत नहीं। सरकार के अनुसार तो, सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है। रेडियो, अखबार, सोशल मीडिया और स्वयं प्रधान सेवक इसके गवाह है। मतलब यह सब, भ्रष्टाचारियों, काला-बाज़ारियों और विपक्ष का किया धरा है।।
अब आपातकाल की घनघोर निंदा करने के बाद, सरकार देश में इमरजेंसी तो घोषित करने से रही। बस जो राज्य देश में अस्थिरता फैला रहे हैं, देशद्रोहियों का साथ दे रहे हैं, वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाकर पुनः चुनाव करवा सकती है। कांग्रेस भी तो यही करती आ रही है। आम आदमी तो नोटा का बटन दबाकर भी बदनाम ही हुआ जा रहा है। वह तो सरकार को माई-बाप समझकर, जिसको कहेगी, उसको वोट दे देगा। वह तो यह सोचकर ही डर गया है कि फलाना नहीं तो कौन।
इधर देश बेचने की अफवाह भी चल रही है। विपक्षी यह भी नहीं बता रहे कि किसको बेचने वाले हैं। अब तक एक पार्टी को आँख मूँदकर वोट देते चले आए, कुछ साल किसी और को भी देकर देख लेते हैं। एक वोट का ही तो सवाल है। एक नागरिक, शास्त्र पढ़ सकता है, लेकिन संविधान तो विशेषज्ञों का काम है। वह तो रोज मंदिर जाता है, और जहाँ भी कुम्भ और महाकुंभ होता है, वहाँ जाकर एक डुबकी लगाकर अमृत की कुछ बूंदों से कृत-कृत्य हो जाता है। जब तक एक नागरिक की ईश्वर में आस्था है, हमारा देश सुरक्षित है। अब अंधों में काना राजा देश चलाते आया है, आज भी विपक्ष में सब अँधे हैं। नागरिक शास्त्र तो यही कहता है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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