श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “जी व न।)

?अभी अभी # 617 ⇒  जी व न ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ये जीवन है

जन जीवन है

वन में भी जीवन है ।

जब तक जान है,

यह जीवन है ।।

प्राणी में जीव है

वनस्पति में जीव है

तो फिर क्या निर्जीव है ?

जड़ में भी जीव

चेतन में भी जीव ।

जहां पांच तत्व

पृथ्वी, जल,अग्नि,

वायु आकाश

कभी अंधकार,

कभी प्रकाश ।।

पंच तत्व ही प्राण तत्व !

तन में प्राण,मन में प्राण

वन,उपवन,जगत में प्राण ।

प्राण ही वायु, प्राण ही तत्व

प्राण से सृष्टि,प्राण से ममत्व ।

किसने प्राण फूंके

इस धरती में,इस अंबर में

इस देह रूपी आडंबर में !

द्वैत,अद्वैत, आस्तिक,नास्तिक,

किंकर्तव्यविमूढ़,

गुरु तत्व,प्राण तत्व

अथवा ईश्वर तत्व ।।

जब तक प्राण था ,तब तक हम थे

यह सृष्टि थी,यह दृष्टि थी

यह जीवन था ।

जब प्राण पखेरु बन

उड़ गया,

तो यह तन गया ।

देखो,साला कैसा तन गया !

तो क्या सारा जीवन गया ?

कहां गए वो प्राण

जो कल तक देह में थे

मुक्त कर गए ,

जीव को निर्जीव बना गए

अब चाहो फूंको,जलाओ,

गाड़ो, अपनी बला से ।।

लो जी,प्राण पुनः

पंच तत्व में विलीन हो गए

तो फिर आप कहां गए !

क्या धरती खा गई

या खा गया यह आसमान ?

स्वर्ग नरक का टिकिट कटा

या पहुंचे वैकुंठ धाम

जिनसे चुन चुनकर बदला लेना था,उनका क्या हुआ !

तो भटको अतृप्त आत्मा बनकर,या फिर एक और

पुनर्जन्म !

कोई मनी बैक गारंटी नहीं

इस जीवन की ।

उस जीवन दाता का एक

Data था, जो खत्म हो गया । नो रिचार्ज,

नो रि -फिल, नो रिन्यूअल ।।

अपने सभी हिसाब किताब

इस जीवन में ही निपटा कर जाएं,

दुरुस्त करके जाएं । 

हो सकता है एक पारी और खेलने को मिल जाए,

अथवा यह तन – प्राण

जीवन् मुक्त हो जाए ।।

आमीन !

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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