श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पौ फटना…“।)
अभी अभी # 666 ⇒ पौ फटना
श्री प्रदीप शर्मा
DAWN BURST
रात्रि विश्राम के लिए बनी है, दिन भर का थका मांदा इंसान, निद्रा देवी की गोद में अपनी थकान मिटाता है, प्रकृति भी रात्रि काल में सोई सोई सी प्रतीत होती है, क्योंकि अधिकांश पशु पक्षी भी इस काल में अपनी दैनिक गतिविधियों को विराम दे देते हैं।
प्रकृति में जीव भी हैं और वनस्पति भी ! जीव भले ही रात्रि में विश्राम करे, उसका दिल धड़कता रहता है, सांस चलती रहती है।
एक नई सुबह के साथ कैलेंडर ही नहीं बदलता, हमारी उम्र भी एक दिन घट/बढ़ जाती है। हमें पता ही नहीं चलता, हमारे नाखून बढ़ जाते हैं, सुबह फिर शेव करनी पड़ती है।
उधर भले ही पेड़ पौधे भी हमें रात्रि विश्राम करते प्रतीत होते हैं, हवा मंद गति से चलती रहती है, सुबह के स्वागत में कहीं कोई कली चटकती है तो कहीं कोई फूल खिलता है। पक्षियों का चहचहाना शुरू हो जाता है, पेड़ पौधों में नई कोपलें दृष्टिगोचर होने लगती है।।
अचानक बहुत कुछ घटने लगता है। लगता है, प्रकृति अंगड़ाई ले रही है। आसमान शनै: शनै: साफ होने लगता है। पौ फटने लगती है। पौ जब फटती है, तब सूर्योदय होता है अथवा जब सूर्योदय होता है, तब पौ फटती है। दिल टूटने की आवाज़ कुछ दीवाने भले ही सुन लें, पौ फटने की आवाज़ अभी तक तो विज्ञान ने भी नहीं सुनी।
अगर पौ नहीं फटेगी तो क्या सुबह नहीं होगी, सूरज नहीं निकलेगा। पंचांग में रोज सूर्योदय और सूर्यास्त का समय दिया रहता है, पौ फटने न फटने से पंचांग को क्या लेना देना। भले ही आसमान में किसी दिन बादलों के कारण सूर्य नारायण देरी से प्रकट हों, पौ तो वक्त पर फट ही चुकी होती है।।
हमने आसमान में बादलों को फटते देखा है, तीन चौथाई जल के होते हुए भी यहां कभी ज्वालामुखी फटते हैं तो कभी इस धरती के कलेजे को भी फटते देखा है। इंसान के भी अपने दुख दर्द हैं। कहीं कुछ फटा है तो कहीं कुछ टूटा फूटा है। एक बाल मन तो फकत एक गुब्बारे के फूटने से ही उदास हो जाता है। पेट्रोल के भाव सुनकर तो फटफटी की आंखें भी फटी की फटी रह गई हैं आजकल।
क्या पौ रात भर से भरी बैठी रहती है, जो सुबह होते ही फट जाती है, पौ का शाम से कुछ लेना देना नहीं, यह सिर्फ सुबह का नज़ारा है। जो सुबह ही फट गई, फिर उसके शाम को पौ बारह होने की संभावना वैसे भी खत्म ही हो जाती है। खेद है, प्रकृति प्रेमी और पर्यावरण प्रेमी भी पौ फटने की घटना को गंभीरता से नहीं लेते।
कवि और कविता की कल्पना की उड़ान चारु चन्द्र की चंचल किरणों से भले ही खेल ले, उसे सूरज का सातवां घोड़ा तक नजर आ जाए, मंद मंद हवा का शोर और कल कल करते बहते झरने की आवाज उसे सुनाई दे जाए, लेकिन पौ फटने का स्वर वह नहीं पकड़ पाया। फिर भी मेरी हिम्मत नहीं कि इस सनातन सत्य को मैं झुठला सकूं कि पौ नहीं फटती। जंगल में मोर नाचा, सबने देखा। आज ही सुबह सुबह, खुले आसमान में पौ फटी, कोई शक ? पौ फटना शुभ है। एक शुभ दिन की शुरुआत होती है पौ फटने से। आपका आज का दिन शुभ हो।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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