श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “डिवाइडर“।)
पहाड़ों, जंगलों और आसपास बसे गांवों में सड़क नहीं होती, पगडंडियां होती हैं। लगातार एक ही जगह पर चलने से रास्ते पर पांव के निशान बनते चले जाते हैं। जब इन पगडंडियों पर आवाजाही बढ़ती चली जाती है तो वहां कच्ची सड़क का निर्माण हो जाता है। चौपायों और बैलगाड़ी की आमदरफ्त से आवागमन में इज़ाफा होने लगता है। ये ही कच्ची सड़कें शहर जाती पक्की सड़कों से मिल जाती हैं। गांव, जंगल, पहाड़ और शहर इन सड़कों के माध्यम से ही एक दूसरे से जुड़ पाते हैं। बारिश में पानी के बहाव से पगडंडियां और कच्ची सड़क किसी काम की नहीं रहती। आम भाषा में इन्हें फेयर वेदर रोड कहते हैं। ऐसी ही परिस्थिति में यह गीत गाया जाता है ;
नदी नारे ना जाओ श्याम पैंया पड़ूं ….।
आज पूरे देश में सड़कों का जाल बिछा हुआ है। गांव गांव और बस्ती में पक्की सड़कों का निर्माण हो चुका है। बारिश के मौसम में पुलियाओं के बहने से अब रास्ते नहीं रुकते। नदियों के बहाव को बांध के जरिए रोककर बिजली और सिंचाई दोनों काज सिद्ध हो रहे हैं। लेकिन बारिश के मौसम में जब नदियां विकराल रूप धारण कर लेती हैं, तो फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। ।
बढ़ती जनसंख्या और बेरोजगारी के कारण लोग गांव से शहर की ओर रुख करने लगते हैं। शहरों में रोजगार है, काम धंधे हैं, अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधा है। शहरों की सड़कों का सीना चौड़ा हो रहा है, शहर की संस्कृति आसपास के गांवों को लील रही है।
शहर के अधिकाश मार्ग पहले एकांगी हुए, फुटपाथों पर अतिक्रमण हुआ, सड़कें सिकुड़ने लगीं। परिणामस्वरूप अतिक्रमण हटाए गए, सड़कें चौड़ी हुई और बीच में डिवाइडर पसर गए। पहले शहर में एक मुख्य मार्ग होता था और एक राजमार्ग ! विकास की एक अपनी ही कहानी है। अगर आवागमन को सुगम करना है, यातायात को नियंत्रित करना है तो सबसे पहले सड़क को दो भागों में बांटो। जो अंग्रेजों का डिवाइड एंड रूल था, वह सड़क का डिवाइडर बन गया। शहर के बाहर पहले रिंग रोड और बाद में उसके भी बाहर बायपास। ।
आज हर बड़ा शहर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है और हर शहरी एक आदर्श नागरिक। जब विकास आदर्श तरीके से होता है तो सबसे पहले अतिक्रमण पर गाज गिरती है। एक आदर्श नागरिक से अनुशासन की भी अपेक्षा की जाती है। बुलडोजर न केवल सड़कों को सिक्स लेन करने के लिए अतिक्रमण को हटाता है, उत्तेजित भीड़ को अनुशासित भी करता है।
डिवाइडर है जहां, बुलडोजर है वहां।
शहर से वापस गांव जाना आजकल पलायन कहलाता है। स्मार्ट सिटी के सड़कों के डिवाइडर क्या शहर और गांव के विभाजक सिद्ध नहीं हो रहे। क्या गरीब और अमीर के बीच की रेखा भी इंसानियत के विभाजन की रेखा नहीं। ।
सड़कों के बीच के डिवाइडर पर आजकल पौधारोपण होता है, शहर के सौंदर्यीकरण के प्रतीक हैं ये डिवाइडर। क्या हुआ जो सड़क के इस पार के लोगों की, उस पार के लोगों के बीच की दूरी बढ़ गई। किसी के लिए वह डिवाइडर है तो किसी के लिए दीवार। एक किलोमीटर चलकर इस पार से उस पार जाने के बजाय एक मजदूर, कामगार अथवा युवा अपनी जान पर खेलकर डिवाइडर फांदकर उस पार निकल जाता है।
क्या यह एक खतरनाक, दुस्साहस भरा, जानलेवा, अनुशासनहीनता का कृत्य नहीं।
खेत में नई फसल के लिए बीज बोने के पहले खरपतवार को साफ करना पड़ता है। विकास की राह भी संघर्ष और बलिदान की राह है। आपस में एक दूसरे को बांटने के बजाय हम अगर एक दूसरे के दुख दर्द बांटें, तो जीवन की डगर आसान हो। डिवाइडर हमारी राह आसान करे, लेकिन हमारे बीच के दिलों की दूरी तो कम ना करे। ।
पगडंडियों से सिक्स लेन के डिवाइडर तक का सफर, और जंगल से स्मार्ट सिटी के कांक्रीट जंगल तक की दूरी में कहीं मानवता और पर्यावरण पीछे ना छूट जाए, अमीर भले ही गरीब ना हो, लेकिन हर गरीब अमीर हो जाए, तो समझिए अच्छे दिन बस आए ही आए ..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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