श्री अजीत सिंह
(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक प्रेरक संस्मरण ‘कोरोना का टीकाकरण अब वरिष्ठ नागरिकों के लिए’। हम आपसे आपके अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)
☆ आलेख ☆ कोरोना का टीकाकरण अब वरिष्ठ नागरिकों के लिए ☆ श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन ☆
सोमवार पहली मार्च को दिन में एक बजकर नौ मिनट पर मुझे व मेरी पत्नी सुमित्रा जी के नाम फोन पर दो एसएमएस मेसेज आए जिनमें हमें कोरोना का टीका लगवाने के लिए मुबारकबाद दी गई थी। टीका लगाने वाली सिस्टर नर्स मंजीत का फोन नंबर दिया गया था कि अगर दवा का कोई दुष्प्रभाव हो तो उनसे संपर्क किया जा सकता है।
कोई आधा घंटे पहले ही हमने टीका लगवाया था। टीका लग गया तो पता भी नहीं चला कि लग चुका है। इसके बाद आधा घंटा वहीं पर बिठाया गया और फिर दो गोलियां दे कर हमारी छुट्टी कर दी गई। कहा, बुखार वगैरा हो तो इन्हे ले लेना।
वहीं बैठे एक दंपति से हमारी बात हुई तो उन्होंने बताया कि पहले टीके के बाद उन्हे दो दिन हल्का बुखार हुआ था, फिर सब कुछ ठीक रहा। हमें अगले 24 घंटे बाद भी ये गोलियां लेने की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई।
साफ सुथरे एक कमरे में तीन नर्स , एक डॉक्टर व कई युवा हाथ में स्मार्ट फोन लिए फुर्ती से काम कर रहे हैं। बड़ी समस्या रजिस्ट्रेशन की है। अस्पताल के गेट के पास दाईं तरफ जहां आयुष्मान भारत के मरीजों के लिए काउंटर बना है, वहीं पर कोरोना टीके का रजिस्ट्रेशन होता है। सब सलीके से हो रहा है।
टीकाकरण केंद्र में उपस्थित डॉ सुनील सोखल व अन्य से हमने यह जानने को कौशिश की कि लोग टीका लगवाने से क्यूं झिझकते हैं, पर किसी के पास कोई सही उत्तर न था। एक ग्रामीण दंपति ने आकर हमसे पूछा कि आंखों का डॉक्टर कहां बैठता है। जब हमने कहा कि यहां तो कोरोना का टीका लगता है, तो वे एक दम जल्दी से पीछे मुड़ गए। कोरोना का ज़िक्र हो तो आदमी को करंट से लगता है। इतना डरते हैं कि टीका लगवाने के लिए किसी भीड़ वाली जगह भी जाना नहीं चाहते।
मैंने फोन कर गांव में जब 72 वर्षीय छोटे भाई जगबीर को टीका लगवाने की सलाह दी तो कहने लगे, गांव में किसी को कोरोना नहीं हुआ। यह नरम लोगों की बीमारी है। देखो, यह न तो किसानों को होती है, न मजदूरों को। ये अमरीका वाले भी नरम आदमी हैं, पसीने का काम नहीं करते। इसलिए ज़्यादा मर रहे हैं। भाई जगबीर की बातों में तर्क तो लगता है, पर मामले तो गावों में भी होने लगे हैं। सावधानी बेहतर रहेगी। टीका लगवाना चाहिए। हिसार अग्रसेन कॉलोनी के हमारे पड़ोस में तीन व्यक्ति कोरोना से मरे। दस बारह बीमार हुए पर ठीक हो गए। परेशानी उन्हें भी खूब हुई।
न लगवाने से बेहतर है, लगवा लिया जाए। सावधानी में ही सुरक्षा है।
वेक्सिन के तीसरे चरण में 60 साल से ऊपर आयु के वरिष्ठ नागरिकों को टीके लगाए जाने का अभियान पहली मार्च सोमवार को शुरू हुआ। हमने सुबह नौ बजे रजिस्ट्रेशन खुलते ही ऑनलाइन अपना व पत्नी सुमित्राजी का नाम लिखवा दिया। साढ़े 11 बजे सिविल अस्पताल पहुंचे तो वहां कुछ ही व्यक्ति टीका लगवाने पहुंचे थे। इनमें अधिकतर पहले व दूसरे चरण में पहला टीका लगवा चुके स्वास्थ्य व पुलिस विभाग के कर्मी थे जो दूसरा टीका लगवाने आए थे।
हम डेढ़ बजे घर लौट आए।
बेहतर है एक दिन पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा कर जाएं। वैसे अस्पताल में जाकर भी रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। आधार कार्ड साथ अवश्य ले जाएं।
पहला दिन, पहला शो’, साठ के दशक में स्कूल व कॉलेज के जवानी के दिनों में यह कहावत किसी नई फिल्म के देखने को लेकर कही जाती थी। अब 75 साल की उम्र में हमने ऐसा ही कुछ कोरोना की वैक्सीन को लेकर किया।
बुजुर्गों को टीका अवश्य लगवाएं। उन्हे कोरोना का सबसे ज़्यादा खतरा है। अच्छी व्यवस्था है। कोई परेशानी नहीं होगी।
© श्री अजीत सिंह
पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन
संपर्क: 9466647037
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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