हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ गुरु पुर्णिमा ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

गुरु पुर्णिमा विशेष 

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी का  गुरु पुर्णिमा के अवसर पर  विशेष  लेख।  )

 

☆ गुरु पुर्णिमा ☆

 

अगर हम मानव जीवन का परम उद्देश्य कहना चाहे तो हम कह सकते हैं कि उसका एक मात्र उद्देश सुख और आनंद प्राप्त करना है। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहता है। इसके लिए वह सभी प्रकार के कर्मों का चुनाव अपने आप करता है। परंतु उसके आनंद और सुख की वृद्धि प्रथम पूज्य गुरु के श्री चरणों से ही शुरू होती है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। इस पृथ्वी पर सभी ब्रम्हांड के गुरु भगवान वेदव्यास जी का अवतरण हुआ था। वेद व्यास जी ने ज्ञान के प्रकाश को चारों  ओर फैलाया। मनुष्य का जीवन तो माता-पिता के कारण होता है। परंतु इस जीवन रूपी काया को संस्कारी कर उसे अपने लक्ष्य पर पहुंचाने का कार्य गुरुदेव के कारण ही होता है। हमारे रामचरितमानस ग्रंथ में गुरु की महिमा का बखान करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने गुरु वंदना से ही इसे आरंभ किया।

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥

 

श्री गुर पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू।
बड़े भाग उर आवइ जासू॥2॥

भारतवर्ष में सदियों से सनातन धर्म और गुरुकुल की महत्ता रही है। गुरु शक्ति और शिक्षा के कारण ही एक से बढ़कर एक विद्वान, वीर और गुणवान महापुरुष हुए भगवान राम को राम बनवाने में गुरु विश्वामित्र का, अर्जुन को श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने में गुरु द्रोण का और एकलव्य की गुरु भक्ति को कौन नहीं जानता है। द्वापर में कृष्ण जी ने संदीपनी गुरु जी से शिक्षा ग्रहण किया। उज्जैन में आज भी लोग संदीपनी आश्रम के दर्शन करने जरूर जाते हैं।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय |

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ||

भगवान स्वयं कहते हैं कि यदि गुरु और भगवान दोनों खड़े हों तो, पहले आप गुरु का वंदन कीजिए। ईश्वर की पूजा अपने आप हो जाएगी। गुरु के सानिध्य से जीवन की दशा और दिशा दोनों सुधर जाती हैं। गुरु का ज्ञान एक दिव्य प्रकाश पुंज है जो हमेशा सही और सुखद मार्गदर्शन कराता है। वेद आदि और अनंत है। वेद का ज्ञान पूरा होना कभी भी संभव नहीं होता। भगवान वेदव्यास ने इसे सरल कर चार भागों में विभाजित किया:- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इसे जनमानस के लिए प्रसारित किया और सरल रुप दे कर उसे वर्गीकृत किया। इसलिए उन्हें भगवान वेदव्यास कहा गया और उनके जन्मदिवस को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाने लगा। गुरु से मिलन परमात्मा का मिलन होता है। गुरु हमारे कुशल मार्गदर्शक हैं। ध्यान, भक्ति, प्रेम, समर्पण, त्याग, संतोष, दया, यह सभी भाव गुरु भक्ति से ही उत्पन्न और सिखाया जाता है। गुरु हमारे अंतर में अंधकार को हटाकर एक दिव्य प्रकाश ज्योति की ओर ले जाते हैं। गुरु के  प्रति सच्ची श्रद्धा भाव और समर्पित श्रद्धा सुमन ही हमारी सच्ची गुरु भक्ति है। गुरु पूर्णिमा को जिनके के कारण हमारा जीवन आलोक कांतिमय बनता है। उसे हर्षोल्लास  पूर्वक मनाना चाहिए। नवयुग का आगमन हो या नव चेतना का संचार हो गुरु सदैव हमारे मार्गदर्शक रहेंगे। समूचे विश्व में गुरु को……

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणम्।

यमाश्रितो हि बक्रो पि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।

कहकर संबोधित करना चाहिए

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश