श्री अजीत सिंह
( हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। दीपावली पर्व के विशेष अवसर पर उन्होंने एक अनुकरणीय उदहारण ‘आचार्य कुंदनलाल की अनूठी दीवाली’ साझा किया है। सहज ही विश्वास नहीं होता कि अभी भी समाज में ऐसी वंदनीय वरिष्ठतम पीढ़ी है जिनसे हमें सीखने की आवश्यकता है। हम आपसे उनकी अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)
☆ आलेख ☆ दीपावली विशेष – आचार्य कुंदनलाल की अनूठी दीवाली ☆
हिसार शहर की अग्रसेन कॉलोनी में रह रहे हमारे पड़ोसी 83 वर्षीय आचार्य कुंदनलाल का परिवार पिछले करीबन दस दिन से दीवाली उपहार के किट तैयार करने में जुटा है। लक्ष्य 108 उपहार का है जिन्हे वे अपने पैतृक गांव डोभी की गौशाला के मजदूर परिवारों व अन्य गरीब घरों को प्रदान करेंगे। गौशाला 35 एकड़ क्षेत्र में बनी है और वहां लगभग 8500 गाएं रखी गई हैं।
हर उपहार किट में दी जा रही सामग्री भी अनुपम है।
लक्ष्मी गणेश जी की प्रतिमा -1,
बड़ा दीपक -1,
छोटे दीपक -21,
सरसों तेल बोतल -1,
रोली – 1,
मोली – 1,
चावल – 500 ग्राम
मोमबत्ती – 2,
तैरती मोमबत्ती – 2,
धूपबत्ती डब्बी – 1,
अगरबत्ती डब्बी – 1
रुई की बत्ती – 21
माचिस – 1
बिस्कुट पैकेट – 4
टॉफी – 10
फिक्की खील – 100 ग्राम
मिट्ठी खील – 250 ग्राम
इतर शीशी – 1
सूती चद्दर का सेट – 1
(उल्लेखनीय है कि किट में पटाखे, फुलझड़ी या बॉम्ब आदि बिल्कुल नहीं हैं।)
“भगवान रामचन्द्र जब बनवास से लौटे तो अयोध्यावासियों ने दीपमाला कर उनका स्वागत किया था। पटाखों व बंबों से नहीं। इनका चलन एक ग़लत प्रथा है। ये प्रदूषण फैलाते हैं जो इन दिनों एक भारी समस्या बन गई है। दिल्ली में ज्यों ज्यों प्रदूषण बढ़ा है, त्यों त्यों कोरोना महामारी के केस बढ़ते जा रहे हैं।
जो लोग पटाखे आदि चलने को धार्मिक सांस्कृतिक परंपरा मानते हैं, वे ग़लत प्रचार कर रहे हैं। किसी धर्म ग्रंथ में इसका उल्लेख नहीं है”, आचार्य जी स्पष्ट करते हैं।
कुंदनलाल जी के घर पर लगभग एक हज़ार धार्मिक पुस्तकों की लाइब्रेरी है। वे बाज़ार में गीता प्रेस की व अन्य धार्मिक पुस्तकें बेचते हैं। उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ज़रूरी सामग्री की एक अलग दुकान भी की है।
असल में कुंदनलाल बहुत पढ़े लिखे नहीं है। वे केवल आठवीं पास हैं पर उनके जानकार उन्हे आचार्य कह कर ही संबोधित करते हैं। वे धार्मिक ग्रंथों के ज्ञाता हैं। वे धार्मिक संस्थानों में प्रवचन करते हैं। उनके जानकार इसीलिए उन्हें आचार्य जी कह कर संबोधित करते हैं।
नमन आचार्य जी की सोच व उनके प्रयास को।
© श्री अजीत सिंह
पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन
संपर्क: 9466647037
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈