श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”
आज प्रस्तुत है संस्मरणात्मक आलेख – “दीवार” की अंतिम कड़ी।)
☆ आलेख ☆ दीवार ☆ श्री राकेश कुमार ☆
दीवार शब्द सुन कर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पुरानी फिल्म में उनके द्वारा किया गया उत्कृष्ट अभिनय की स्मृति मानस पटल पर आ जाती है।
हमारे जैसे यात्राओं के शौकीनों को चीन स्थित विश्व की सबसे बड़ी दीवार देखने की इच्छा प्रबल हो जाती हैं। देश भक्ति का सम्मान करते हुए, मन में विचार आया कि हमारे देश की सबसे बड़ी दीवार खोजी जाए। भला हो गूगल महराज का उन्होंने ज्ञान दिया की विश्व की दूसरी बड़ी दीवार हमारे राजस्थान में कुंभलगढ़ किले की है। बचपन के मित्र का साथ था तो चल पड़े किले की दीवार फांदने। वैसे दीवार फांदना आईपीसी धारा में गैर कानूनी भी होता हैं।
उदयपुर से करीब नब्बे किलोमीटर दूरी है। ये ही वो पवित्र स्थल है, जहां देश के अभिमान महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। किले का नाम उनके वंश के कुंभल महराज के नाम से है। जिन्होंने बत्तीस किलों का निर्माण किया था। जिस प्रकार बत्तीस दांत जीभ की रक्षा करते है, उन्होंने ऐसा अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए किया था। किले की चढ़ाई सीधी है, और दूरी भी नौ सौ मीटर से अधिक है। रास्ते में सात गेट है, जहां बेंच पर विश्राम कर सकते हैं।
गाइड की व्यवस्था भी है। सात सौ रुपये शुल्क है। एक परिचित ने कहा था, वहां एक बारह वर्ष की बच्ची पूरी कहानी सुना कर आपके मोबाईल में रिकॉर्ड भी कर देती है। उसको भी प्रेरित कर गाइड के स्थान पर उसकी सेवाएं उपयोग में ली। लड़की ने हम सबको थोड़ी दूर ले जाकर पूरी कहानी सुनाई। जब हमने उससे पूछा की इतना डर क्यों रही हो, तो वो बोली साहब “दीवारों के भी कान होते हैं,” आपने सुना होगा। चूंकि उसके पास गाइड का लाइसेंस नहीं है, इसलिए वो सब के सामने ऐसे कार्य नही कर सकती। दुनियादारी छोड़ मन की दीवारों (मतभेद) को तोड़ कर सुकून से जीवन व्यतीत करें।
© श्री राकेश कुमार
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