श्री अजीत सिंह जी

(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते हैं।  इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है एक नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण आलेख  ‘नोबेल पुरूस्कार मिला जीन एडिटिंग की कैंची पर,  दो महिला वैज्ञानिकों का कारनामा ।  हम आपसे उनकी अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)

☆ आलेख ☆ नोबेल पुरूस्कार मिला जीन एडिटिंग की कैंची पर,  दो महिला वैज्ञानिकों का कारनामा ☆ 

जीवन की आधारभूत इकाई को जीन कहा जाता है और इसे समझने व उपयोग में लाने के विज्ञान को जेनेटिक इंजीनियरिंग का नाम दिया जाता है। यह विज्ञान अब कपास जैसी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों और लुलू-नाना की कहानी से इतना आगे बढ़ गया है कि  जीनोम एडिटिंग का एक नया, सरल और सस्ता उपाय ढूंढने के लिए दो महिला वैज्ञानिकों को इस वर्ष का केमिस्ट्री का नोबेल पुरुस्कार दिया गया है।

(सुश्री एमानुएल चरपैंटर और सुश्री जेनिफर डूडना)

एमानुएल चरपैंटर और जेनिफर डूडना की खोज को जीनोम की कांट छांट करने की ऐसी कैंची का नाम दिया गया है जो जीवन के किसी भी स्वरूप का एक नया कोड बना सकती है। इस कैंची का नाम क्रिस्पर कैस9 रखा गया है जिसकी मदद से वैज्ञानिक पशुओं, पौधों व सूक्ष्म जीवाणुओं का डीएनए बदल सकते हैं।

(हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो डॉ सुनीता जैन)

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ सुनीता जैन कहती हैं कि जीनोम एडिटिंग का सरल और सस्ता तरीका उपलब्ध होने से एड्स, कैंसर, मलेरिया, देंगी और चिकनगुनिया जैसी असाध्य बीमारियों के इलाज की संभावना बन चली है।

जीन एडिटिंग के सहारे वैज्ञानिक  वुली मैमथ और डायनासोर जैसे लुप्त जानवरों के जीवाश्मों से पुन: इन जीवों को ज़िंदा कर सकने की संभावना को देख रहे हैं। पशुओं और पौधों की बीमारियां उनके बीमार जीन निकाल कर दूर की जा सकेंगी।

मच्छर के जीन बदल कर उनकी अगली पीढ़ी को मलेरिया फैलाने के अयोग्य बना दिया जाएगा।

फसलों की पैदावार भी बढ़ाई जा सकेगी। पर क्या जीन एडिटिंग के प्रयोग मनुष्यों पर भी किए जाएंगे और उन्हे बेहतर या दुष्कर बनाया जा सकेगा?

इसका सभी सरकारें व वैज्ञानिक विरोध कर रहे हैं। इसी संदर्भ में लूलू और नाना की कहानी उभरती है। चीन के एक वैज्ञानिक ही जियानकुई ने  एड्स की बीमारी से ग्रस्त एक व्यक्ति और उसकी सामान्य पत्नी के सीमन व अंडे से तैयार भ्रूण की जीनोम एडिटिंग कर एड्स बीमारी के जीन निष्क्रिय कर दिए और भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थापित कर दिया। उसने दो स्वस्थ बेटियों को जन्म दिया जो एड्स मुक्त थीं। इन्हीं बच्चियों को लूलू और नाना के नाम से पुकारा जाता है। वैज्ञानिक ही जियानकुई ने जब अपनी इस उपलब्धि की घोषणा की तो हर तरफ से घोर विरोध हुआ। चीन की सरकार ने वैज्ञानिक ही जियानकुई पर मुकद्दमा चलाया  और उन्हे तीन साल की कैद की सज़ा सुनाई  गई

पर इस तकनीक के दुरुपयोग की संभावनाएं भी हैं। क्या इसके सहारे डिजाइनर बेबी तैयार किए जाएंगे? क्या मनुष्यों की अपार शक्ति बढ़ा कर उन्हे लड़ाई में उपयोग लाया जाएगा? क्या कुछ मानव प्रजातियों को समाप्त कर सभी को एक समान बनाया जाएगा? जैविक इंजीनियरिंग के उपयोग से कुछ जन्मजात बीमारियां जैसे अंधापन, थैलेसीमिया, सिक्कल सैल अनेमिया, सिस्टीक फाइब्रोसिस  का इलाज ढूंढने की कोशिश की जा रही है। दुनिया में हर चालीस हजार बच्चों में से एक बच्चा जन्मजात अंधा होता है।

पर जीन एडिटिंग का उपयोग जैविक युद्ध करने के लिए भी किया जा सकता है। और सबसे ख़तरनाक होगा डिजाइनर बेबी तैयार करना। फिलहाल सभी वैज्ञानिक और सरकारें इसके खिलाफ हैं, पर टेक्नोलॉजी सुलभ होने पर इसके दुरुपयोग को रोकना हमेशा के लिए शायद संभव न हो। यह मानवता के सामने एक नैतिक प्रश्न रहेगा।

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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