श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 10 – परदेश का मोहल्ला ☆ श्री राकेश कुमार ☆
मोहल्ला शब्द इसलिए चुना, क्योंकि वर्तमान निवास एक विदेश की आवासीय सोसाइटी में है, जिसमें करीब पंद्रह सौ फ्लैट्स हैं। अब तो हमारे जयपुर में भी ऐसी कई सोसायटी है जिसमें एक हजार से अधिक फ्लैट्स हैं, प्रमुख रूप से गांधी पथ के पास “रंगोली” है, जिसमें भी सोलह सौ से अधिक फ्लैट्स हैं।
यहां की सोसाइटी में सभी किराये से रहते हैं। कोई कंपनी इसको विगत साठ वर्षों से किराए पर चला रही हैं। आसपास इतनी बड़ी और पंद्रह मंजिल कोई और भवन ना होने से दूर से ही दृष्टि पड़ जाती हैं। हमारे जैसे प्रवासियों को ढूंढने में कठिनाई नहीं होती हैं। वैसे आजकल तो लोग पड़ोसी के घर जाने से पहले भी गूगल से ही रास्ता पूछते हैं।
भवन बड़ा होने के कारण नगर बस सेवा भी अंदर तक सुविधा देती है,वो बात अलग है, कि यहां बहुत कम लोग बस से यात्रा करते हैं। कार पार्किंग में दो गाड़ियां खड़ी रखने का कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं हैं। बिना सोसाइटी के स्टिकर वाली गाड़ी अवश्य क्रेन द्वारा उठा दी जाती हैं। अतिथि के लिए भी अलग से पार्किंग व्यवस्था हैं। विशेष योग्य जन जिनकी गाड़ी में इस बाबत स्टिकर होता हैं, को प्रवेश द्वार के पास आरक्षित स्थान मिलता हैं।
कार पार्किंग के लिए स्थान बहुत ही सलीके से चिन्हित किए गया हैं। कार रखना और निकलना अत्यंत सुविधा जनक हैं। कार एकदम सीधी लाइन में खड़ी देखकर अपने पाठशाला के दिन याद आ गए,जब रेखा गणित में हम स्केल की सहायता से भी सीधी रेखा नहीं खींच पाते थे। गुरुजन हमारे स्केल से ही हाथ पर सीधी लाल लाइन खींच दिया करते थे।
© श्री राकेश कुमार
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